Book Title: Navtattvasangraha tatha Updeshbavni
Author(s): Atmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
Publisher: Hiralal R Kapadia

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Page 255
________________ २ सा " मि , २२६ श्रीविजयानंदसूरिकृत [८ बन्धअथ सामान्य तिर्यंच रचना गुणस्थान ४ आदिके सत्ताप्रकृति १४७ तीर्थकर १ नही. पहिले १४७, दूजे १४७, तीजे १४७, चौथे १४७; मनुष्य रचना गुणस्थान १४ वत्. अथ सौधर्म आदि सहस्रार पर्यंत देवलोक रचना गुणस्थान ४; सत्ताप्रकृति १४७; नरकआयु नास्ति. अथ आनत आदि नव ग्रैवेयक पर्यंत सत्ता० १४६; नरक १, तिर्यंच-आयु नही. १ मि १४६ तीर्थकर १ उतारे १ मि १४५ तीर्थकर १ उतारे अथ५ अनुत्तर रचना २ | सा , गुणस्थान १-चौथा; सत्ता० १४६, नरक-आयु | १, तिर्यंच-आयु १, ४ अ १४७ तीर्थकर १ मिले ४ अ १४६ तीर्थकर १ मिले एवं २ नही. अथ भवनपति, व्यंतर १, जोतिषि १, सर्व देवी १, रचना गुणस्थान ४ आदिके सत्ताप्रकृति १४६ अस्ति. तीर्थकर १, नरक-आयु १; एवं २ नास्ति. १४६ ० । अथ एकेंद्री विकलत्रय रचना गुणस्थान २ आदिके सत्ताप्रकृति १४५ अस्ति. तीर्थकर १, नरक-आयु १, देव-आयु १ नही. अथ पंचेगी रचना गुणस्थानवत् ३ मि , | १ | मि १४५ ४ | अ , . २ | सा , अथ पृथ्वीकाय १, अप्काय १, वनस्पतिकाय रचना एकेंद्री विकलत्रय रचनावत. अथ तेजोवातकाय रचना गुणस्थान १-मिथ्यात्व १, सत्ताप्रकृति १४४ है. तीर्थकर १, देव-आयु १, मनुष्य-आयु १, नरक-आयु १; एवं ४ नास्ति. अथ त्रसकाय रचना गुणस्थानवत. अथ मनोयोगचतुष्क ४, वचनयोगचतुष्क ४, औदारिककाययोग १, एवं योग ९ गुणस्थान रचनावत् . अथ वैक्रियकाययोग रचना गुणस्थान ४ आदिके सत्ताप्रकृति १४८; पहिले १४८, दूजे १४७, तीजे १४७, चौथे १४८. अथ आहारक आहारक मिश्र रचना गुणस्थान १-प्रमत्त; सत्ताप्रकृति १४८ सर्वे, अथ औदारिकमिश्रयोग रचना गुणस्थान ४-पहिला, दूजा, चौथा, तेरमा; सत्ता० १४६ अस्ति. देव-आयु १, नरक-आयु १ नही. १ मि १४५ तीर्थकर १ उतारे २ सा | अ १४६ तीर्थकर १ मिले. सातमे गुणस्थानकी, नवमे गुणकी, दशमे गुण की, बारमे गुण०की; एवं ६१ की विच्छित्ति. शेष ८५ रही तेरमे गुणस्थानमे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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