Book Title: Navtattvasangraha tatha Updeshbavni
Author(s): Atmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
Publisher: Hiralal R Kapadia

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Page 235
________________ श्रीविजयानंदसूरिकृत [ ८ बन्ध अथ माघवी नरक रचना गुणस्थान ४; बंधप्रकृति ९९ पूर्वोक्त २०, मनुष्यायु १; एवं २१ नास्ति. २०६ १ मि ९६ २ सा ९१ ३ मि ७० अ ७० १ मि १९७ २ सा १०१ अथ तिर्यग्गति रचना गुणस्थान ५ आदिके बंधप्रकृति ११७ अस्ति, तीर्थंकर १, आहारकद्विक नास्ति. मनुष्यद्विक २, उंच गोत्र १; एवं ३ उतारे. मिथ्यात्व १, हुंडक १, नपुंसक १, छेवट्ठा १, तिर्यचायु १; एवं ५ विच्छित्ति १ मि १०७ अनंतानुबंधी आदि २४ विच्छित्ति व्यौरा साखादनवत् मनुष्यद्विक २, उंच गोत्र १ मिले. ० 0 Jain Education International मिथ्यात्व १, हुंड १, नपुंसक १, छेवट्टा १, एकेन्द्रिय १, थावर १, आतप १, सूक्ष्म १, अपर्याप्त १, साधारण १, विकलत्रिक ३, नरकत्रिक ३; एवं १६ विच्छित्ति. ३ मि ६९ ४ अ ७० ५ | दे | ६६ अथ तिर्यंच अपर्याप्ति रचना गुणस्थान तीन- १|२|४; बंधप्रकृति १११ अस्ति. तीर्थकर १, आहारकद्विक २, आयु ४, नरकद्विक २; एवं ९ नास्ति, 0 अनंतानुबंधी आदि २५ तो सास्वादन गुणस्थानवत् अने वज्रऋषभ १, औदारिकद्विक २, मनुष्यत्रिक ३; एवं ३१ विच्छित्ति. देवायु १ उतारे. देवायु १ मिले. अप्रत्याख्यान ४ विच्छित्ति. ० o O tara २, वैक्रियद्विक २ उतारे. मिथ्यात्व १, हुंड १, नपुंसक १, छेवट्ठा १, एकेन्द्रिय १, थावर १, आतप १, सूक्ष्म १, अपर्याप्ति १, साधारण १, विकलत्रय ३ एवं १३ विच्छित्ति. अनंतानुबंधी ४, स्त्यानगृद्धित्रिक ३, दुर्भग १, दुःस्वर १, अनादेय १, संस्थान ४ २ सा ९४ मध्यके, संहनन ४ मध्यके, अप्रशस्त गति १, स्त्रीवेद १, नीच गोत्र १, तिर्यचकि २, उद्योत १, वज्रऋषभ १, औदारिकद्विक २, मनुष्यद्विक २; एवं २९ विच्छित्ति. tage २, वैयद्विक २३ एवं ४ मिले ४ अ ६९ अथ तिर्यंच अलब्धिपर्याप्त रचना गुणस्थान १ - प्रथम, बंधप्रकृति १०९ अस्ति, तीर्थकर १, आहारकद्विक २, देवत्रिक ३, वैक्रियद्विक २, नरकद्विक ३; एवं ११ नास्ति, उपरला यंत्र करण अपर्याप्तका जान लेना. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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