Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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जमतां जमतां पुरमां कीधो मित्र जो, कुबेरदत्त नामा एक व्यवहारीयोरे लो ॥ हारे तस मांहोमांहे बाजी पूरण प्रीति जो, ससनेही नेहीनी वात जारीयोरे लो॥४॥ हारे एम नांख्युं कुबेरे अहो अहो मित्र रुदत्त जो, बंधाणी तुमसेंती माया श्राकरीरे लो॥ हारे तुम्हे परदेशीडा कामणगारां लीक जो,पंखीनी पेरे जा न मिलो फरीफरीरे लो ॥५॥ हारे मेंतो मित्रजी माहरा कहींयें था पुरमांहि जो, नेहडलो नवि कीधोरे कोश्थी एवडोरे लो ॥ हारे मारी विन ति मांनो श्रावो मंदिर मुफ जो, कांश जो पोताना करीने त्रेवडोरे लो॥६॥ हारे हुं तो जाणीश की धी मुऊने करुणा जोर जो, प्राहणला तुम जेहवा किहांथी श्रांगणेरे लो॥ हारे तुम जेहवा नरथी क्यांहथी एक घडी गोठ जो, जेह तेहथी वातडली करतां नवी बने रे लो ॥ ७ ॥ हारे तुम्हे यहां तो रहेता हशो कोश्कने गेह जो, तेहथी शुं घर जूहुं कहोजी थापणुंरे लो॥ हारे तुमे रहेशो तेता दिन करशुं गुजराण जो, फेरीने शुं कहीयें तुह्मने घj घणुंरे लो ॥७॥ हारे कोइ वातनो अंतर त्रेवडो माहरा राज जो, करशुं जे काश् थाशे अमथी चा
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