Book Title: Narmada Sundarino Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ ( 3 ) 譯 गु० ॥ सां० ॥ १३ ॥ जनकें जणवा पाठवीरे लाल, सा अध्यापक गेह ॥ गु० ॥ जैनधर्म जलो अन्यसे रे लाल, लघुश्रमी धरी नेह ॥ ० ॥ सां० ॥ १४ ॥ कीले हिंसा तटिनी तटे रे लाल, लीधो विनय कज गंध ॥ गु० ॥ चाखी समकित सूखी रे लाल, जाण्यो जैनप्रबंध | गु० ॥ सां० ॥ १५ निष्ठा एक जि नधर्मनी रे लाल, मिथ्यात्वथी प्रतिकूल ॥ गु० ॥ वि कथा सर्व विरमी रही रे लाल, जेम दल गलित तांबूल ॥ ० ॥ ० ॥ १६ ॥ पुत्री काही पेखीने रे लाल, हरखे तात अतीव ॥ गु०॥ तात प्रभृति स दु को करे रे लाल, धर्मकथा ते सदैव ॥ गु० ॥ सां० ॥ १७ ॥ जेहवी संगति कीजीए रे लाल, तेह वा गुणनी केल ॥ गु० ॥ कुसुमनी संगतिथी तेलें रे लाल, पाम्युं नाम फूलेल ॥ गु० ॥ सां० ॥ १८ ॥ पामी वीरमती सुतारे लाल, यौवनवय सुकुमाल ॥ गु० ॥ मोहन विजयें वर्णवीरे लाल || बीजी ढाल र साल ॥ ० ॥ सां० ॥ १५ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा ॥ सा पुत्री नवयौवना, देखी चिंते तात ॥ पुरमें को 5 महेभ्यसुत, जोइ करूं जामात ॥ १ ॥ पुर सघलुं For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa InternationalPage Navigation
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