Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१०) करीरे लो ॥ हारे अमें लेसो सो लोटणां तुम्ह हजूर जो, कहिये के पयललीया साहिब अनुसरी रे लो ॥ ए॥ हारे तव बोल्यो ततक्षिण रुजदत्त हित लाय जो, नाइजी तुम्हें लांख्यु ते अमें शिर धमु रे लो ॥ हारे कांश तुम श्रम मेलो हू पूरव लेख जो, दैवे ऐ मनगमतुं काम नबुं कलुं रे लो। ॥१०॥हारे जो तमचों हेतले श्रम उपर परिपूर्ण जो, अलगा रहीयाथी तोश्य द्वंकडा रे लो ॥ हारे जूठ गयण घनाघन उमहे नूतल मोरजो, मंके रे ते तांडव रसवशे रूपडारे लो ॥ ११॥हारे जुकिहां दिनकरने किहां कैरववन्न जो, तोहीपण विकसे ते साचा नेहथी रे लो ॥ हारे कांश क्यारे कोथी टाल्यो पण न टलंत जो, मानेतो मनमे सो होय जेहथी रे लो॥१२॥हारे तुमें राजी जो बो मुफथी आवे गेह जो, तो तुमने किमए 5 हवू कहो थोडे गजेरे लो॥ हारे एम कहीने रुज दत्त श्राव्यो मित्रने गेह जो, लाखेणी मनुहारो ते सखरी सजेरे लो॥१३॥हारे रहियो ते परदेशी मित्रना मंदिर मांहि जो, पोताना कुटुंबनी परे सह थर रह्यां रे लो ॥ हारे ते खाये पीये नित्य नवला
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