Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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वर कारणे, जोयुं करी तलास ॥ पण वर पुत्री सारि खो, न मल्यो को तास ॥२॥मिथ्यादृष्टि नयरमें, अडे घणा धनवंत ॥ तस घर तनुजा आपतां, मन नवि धारे संत ॥ ३ ॥ केम दे श्रावक बालिका, मिथ्यात्वीने गेदना केम दीजे चंभालने, वृंदा तरु ससनेह ॥॥ मणि न जडे को लोहमें, म्हेली कुंदन पत्र ॥ वृषनसेन एम मनमें, आलोचे एकत्र ॥५॥
॥ ढाल त्रीजी॥ . हारे माहरे जोबनीयानो लटको दहाडा चार जो ॥ ए देशी ॥ हारे हवे आव्यो ए हवे रूपचं पुरहुत यो ॥ वारु रे रुजदत्त नामा वाणीयोरे लो॥ हारे कांच करवा वाणिज्य वर्षमान पुरमांहि जो, सेइने करिया' लोकें प्रमाणीयोरे लो॥१॥ हारे तेणे वेची साटी सयण वसाणानी कोडि जो, कीधा रे तेणे गांठे दाम सोहामणा रे लो॥ होरे जस पु एय सखाइ डे तेहने शी खोड जो, एके के पगले रे पुंज मणितणा रे लो॥॥हारे तेणे पहेरी अंबर सखरां चहूटामांहि जो,हिंडे ते मोडामोडे बेलशुरे लो ॥ हारे परदेशीनी परगाममें एहिज रीति जो, फोगटीयो थर फूले धोबी बेलशुरे लो ॥३॥ हारे तेणे
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