Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 7
________________ (५) पा पट्टरागिणी, रतिसुंदरी नामेण ॥ कीधो मुख आजासथी, कांखो उम्पति जेण ॥ ५॥ एक पद उज्ज्वल करे, ननचर चंद्र प्रसिद्ध ॥ राणीमुख को ई अपर शशी, बिहु पद उज्ज्वल कीध ॥ ६ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ प्रवहण तिहांथी पूरीयुरे लाल ॥ ए देशी ॥ नगरनूषण सरिखो तिहां रे लाल, वृषनसेन सा र्थेश ॥ गुणवंता रे॥रयणायर सरिखो धने रे ला ल, जलदधि दाता विशेष ॥ गु० ॥ १॥ सांजल जो श्रोता जना रे लाल ॥ शीलतणो संबंध ॥गु०॥ सरस वचन रचना तिसी रे लाल, जेम सोनुने सु गंध ॥ गु० ॥ सांग ॥ जलवट थलवटना करे रे लाल, अव्य बलें व्यवसाय ॥ गु० ॥ महिपति पण माने घणुं रे लाल, धने वश कोण न थाय ॥ गुण ॥सांग ॥३॥ सोनुं रु' सामटुं रे लाल, मणि मा णिकना पुंज ॥ गु० ॥ कर धरे मोती दासीयो रे लाल, परिहरि जाणी गुंज ॥ गु०॥ सांग ॥४॥वी रमती तस गेहिनी रे लाल, लाजें नृतलोचन्न ॥ गुण ॥ शील धर्मनी जाणीये रे लाल, अनिनव नू मि जतन्न ॥ गु० ॥ सांग ॥ ५॥ पतिजक्ति चंञान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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