Book Title: Nandisutram Author(s): Devvachak, Malaygiri Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund View full book textPage 6
________________ नन्दिसूत्रम् ।। GI प्रस्तावना। ॥२॥ चारित्रनो प्राण ए ज्ञान छे. १अथवा ज्ञान ज सम्यक्त्व ज्ञान अने चारित्ररूप छे, आवा ज्ञान- निरूपण तेमां करेलु होवाथी नंदीसूत्र परम मंगल छे. ___आत्मा तेमज सकल पदार्थोने ओळखावनार जीवनो मुख्य गुण ए ज्ञान छे. ए ज्ञानना अवरोधक तत्वोनो समूल नाश-क्षय अथवा नाश साथे दबाण [क्षयोपशम]ज थई शके छे. पण एकलु दबाण [उपशम] थई शकतो नथी. आ आगमसूत्र ते परम आत्मगुणनी ज विवेचना करतुं होइ सर्व मंगलोमां अग्रगण्य स्थान भोगवे छे. जैनशासनमा अग्रपद धरावता आचार्यपदनुं आरोपण करवान होय ते समये आ 'नंदी'सूत्रनुं श्रवण ए आवश्यक मनायुं छे. [२] जैन साहित्यमां नंदीनुं स्थान जैन आगमशास्त्रोमां पण आ सूत्रनुं घणु उच्चस्थान छे, केमके कोईपण शास्त्रनो अभ्यास करतां पहेला नंदीसूत्रनो अभ्यास करवो जोइए. '२नंदीअणुयोगदार', विहिवदुवग्याइयं च नाऊणं । काऊण पंचमंगल-मारम्भो होइ सुत्तस्स' ॥१॥ अर्थात् नंदी अने अनुयोगद्वारनो विधिपूर्वक अभ्यास करीने पछी ज सूत्रमात्रनो अभ्यास करवो उचित छे. नमस्कार महामंत्रने जे महाश्रुतस्कंध कहेवाय छे. तेना कारणमा तेनुं सर्वशास्त्रमा अभ्यन्तरपणु कारण होय तेवु सांभळवामां आवे छे. ते नमस्कारनी सर्वशास्त्राभ्यन्तरताने सिद्ध करवा माटे पू. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणजी जे दलील १ आत्मानमात्मना वेत्ति, मोहत्यागाद्य आत्मनि, तदेव तस्य चारित्रं, तज्शानं तच्च दर्शनम् ॥१॥ उपाध्यायजी यशोविजयजी म. तत्वार्थटीका पृ. १६ । २ आ नि. गा. १०१३ । ॥२॥ Jan Education Intel For Private Personal Use Only Jainelibrary.orgPage Navigation
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