Book Title: Nandisutram
Author(s): Devvachak, Malaygiri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ प्रस्तावना। नन्दिसूत्रम् । ॥८॥ रूपकनो बीजो नंबर छे. ज्यारे हारिभद्रीय टीकामां नगरनी उपमा प्रथम छे अने स्थनी उपमानो बीजो नबर छे. ते वर्धा रूपको अत्यंत सुन्दर अने गंभीर होवाथी तेनुं यत्किंचित् दर्शन अहीं कराववामां आवे छे. (१) स्थः- पंचमहाव्रत रूपी रथ खेंचनारा तप अने नियमरूपी अनेक प्रकारना अश्वो छ वळी स्वाध्यायना शब्द रूपी नंदीघोषथी ते स्थ गुंजी रह्यो छे. प्रथम श्लोकमा ज पंचमहाव्रतने संघ कह्यो छे. ते पण घणुज सूचक छे. वळी 'नंदी' एवु नाम पण सूचवायु होय तेम लागे छे. (२) चक्र:- अहीं संघने चक्रनु रूपक आप्यु छ जे चक्रमा (१) अहीं 'सावग' शब्दथी श्रोता ज अर्थ करवो जोइए केमके प्रज्ञापक शब्दनी पछी 'च' मूकवामां आव्यो छे. जेथी अहीं जेनो अधिकार प्राप्त थयो होय ते ज ग्रहण शरु थइ शके पण श्रावक एटले श्रमणोपासक (गृहस्थ) नहीं. वळी अधिकारीनुं वर्णन कर्या बाद | चूर्णिकारे जे अवतरणिका करी छे. तेनाथी पण ते ज वस्तुनुं सारी रीते समर्थन थाय छे. "दुस्सगणिसीसो देववाचको साहू जो जणहिएच्छाए इणमाह." (३) नगरः- सेंकडो गुण रूपी भवनोथी संकीर्ण दर्शनविशुद्धिरूप शेरीओथी युक्त, निरतिचार चारित्ररूप किल्लाथी | युक्त एषु संघरूपी नगर छे. वळी ते नगर श्रुतरूप रत्नोथी भरेलु' (समृद्ध) छे. (४) पद्यः- अहीं संघने कमळनी उपमा आपी छे. कमळ जेम जळमाथी पेदा थाय छे. तेम संघरूपी कमळ पण कर्मरजरूपी जलना समुदायमाथी पेदा थलु छे. (नीकळेलु छे.) ते कमळनुं लिंग श्रुतरूप रत्न छे. वळी तेमां पांच महाव्रतरूपी स्थिर कर्णिका छे.. For Private & Personal Use Only ॥८॥ Jain Education intamiti Pw.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 294