Book Title: Nandisutram
Author(s): Devvachak, Malaygiri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 9
________________ नन्दिसूत्रम् । 11411 Jain Education International उपलब्धिथी दूर थयो छे. त्यारे शु भर्तृहरिनी शैली ते काळना लेखकोनी शैलीने मळतीज हती ? नहीं ज. म शैली आदि लइने कल्पनात्मक काळनिर्णय करवो ए बिलकुल व्याजबी नथी. मात्र शब्दोनी के शैलीनी साम्यताथी अमुक ग्रंथ उपर अमुक ग्रंथकारनो प्रभाव पडथो छे. आ वार्ता इष्ट नथी. हा जरूर ग्रंथनो के ग्रंथकारनो नामनिर्देश करवामां आव्यो होय अथवा “उक्तं च' आदि शब्दोथी एमनो आशय टांकवामां आव्यो होय तो "आ ग्रंथकारनी पछी आ ग्रंथकार थया छे" एवं नक्की करवामां आवे तो ते हजुए ठीक छे. (१) जो के शिलालेखना आधारे अथवा सिक्काओना आधारे पण अनुमान थइ शके. छतां पण राजाओनां एकना एक नामो पण घणां आवे छे. तेथी कया राजानो संबंध कोनी साथे छे ते बाबतमां ज्यां सुधी स्पष्ट प्रमाण न मळे त्यां सुधी केवळ कल्पनाना आधार उपर इतिहासनो निर्णय करवो ए अमने तो ब्याजबी लागतुं ज नथी. आटली विचारणा कर्या पछी हवे मूळ ग्रंथना विवेचन उपर जड़ए. विभाग- २ विषय-निरूपण आ समस्त ग्रंथ एक व्यवस्थित रचनाथी युक्त छे. जेना सामान्य रीते आ दस विभाग छे. ते प्रथम दर्शाविवामां आवे छे. For Private & Personal Use Only प्रस्तावना । ॥५॥ www.jainelibrary.org

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