Book Title: Nandisutram Author(s): Devvachak, Malaygiri Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund View full book textPage 7
________________ नन्दिसूत्रम् । ॥३॥ प्रस्तावना। आपे छे ते विचारवा जेवी छे. तेओ जणावे छ के "जं च पिहो ण पढिज्जइ नंदीए सो सुअक्खन्धो" गाथा १० ___ अर्थात् नंदीसूत्रमा बधां सूत्रोनां नाम आव्यां छे. तेमां पंच-अध्ययनात्मक नमस्कार श्रुतस्कंधने पृथक कह्यो न होवाथी ते सर्व श्रुताभ्यन्तरभूत छे. पंचमाङ्गरूप श्रीभगवतीजी जेवा आगमग्रन्थमा पू. देवर्धिगणि क्षमाश्रमणजीए नंदीसूत्रनी भलामण करी छे. | आगमने पुस्तकारूढ कर्या ते वखते तेओश्रीए ज्यां ज्यां जरूर पडी त्यां त्यां नंदी आदि अनंगप्रविष्ट ग्रंथोनी भलामण करी छ. श्रीमल्लवादीसरिजीए पण नयचक्रमां नंदीनुं प्रमाण 'आर्षम्' कहीने आप्यु छे. चतुर्दशपूर्वधर श्रीभद्रबाहुस्वामीजीए आवश्यक-नियुक्तिमां नंदीना अध्ययननी आवश्यकता जणावी छे. आ सूत्र माटे बीजा लेखको लखे छे के, छेवटे जैन सिद्धांतमा नंदीस्त्र अने अनुयोगद्वारसूत्रनो विचार करवानो रहे छे. बन्नेना विषयो समान होवा छतां पद्धतिमा बन्ने जुदा छे. तेओ छेवटे अंशे ज्ञानकोश समान छे अने पवित्र मूळ ग्रन्थोनु साचु ज्ञान मेळवबा साधनरूप छे.' आ प्रमाणे डॉ बेलरना अभिप्राय प्रमाणे तेना कर्ता पोताना वाचकोने आ सूत्रोमां प्रस्तावनारूपे सिद्धांत प्रतिपादन करे छे. ते विद्वान जणावे छे केः- 'आ बे ग्रन्थो तेना माटे सुंदर योजायेला छे के जे ग्रंथोना समूहने पूर्ण करीने तेनी टुंकी नोंध उतारीने पवित्र ज्ञानना झरणमांथी पान करवा | जिज्ञासु होय.' [ उत्तरहिन्दु. जैनधर्म. पृष्ठ २११] ॥३॥ www.jainelibrary.org in Education International For Private 8 Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 294