Book Title: Nandisutram
Author(s): Devvachak, Malaygiri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 8
________________ नन्दिसूत्रम् । प्रस्तावना। ॥४॥ [३] शैली अने काळनिर्णय आ सूत्रमा अतिहासिक पट्टावली-पाटपरंपरा आपवामां आवी छे. जेमा अनेक महान शासनप्रभावक आचार्योनी नामावली मूकवामां आवी छे अने ते महापुरुषोए शुशुं कार्य कयु तेनुं आई दिग्दर्शन कराव्यु छे. जो आनी साथे संवत मूकवामां आव्या होत तो आजे स्वतंत्र विचारको द्वारा जे गुचवणो उभी करवामां आवी छे ते थवा पामत नहीं. जो के ते दिशामा श्रद्धालु विद्वानो प्रयास करशे तो ते गुचवणोनो उकेल जरूर आवशे. जे काळमां अत्यारे अतिशयज्ञानीओनो अभाव छ, पूरा ग्रंथो मळी शकता नथी. छतां केवळ शैलीना अनुसारे कल्पनाओ द्वारा ईतिहास तैयार करवामां आवे छे ते वास्तविक कही शकाय नही. केम के शैली एक काळमां पण विविध देखाय छे. कालीदासना समयमां थयेला कविओनी शैली अने कालीदासनी शैली एक सरखी हती एम कोण कही शके ? . शैलीनुं वैविध्य लेखकोनां ज्ञानगांभीर्यादि विविध कारणो पर आधार राखे छे. 'पउमचरियं' नामना ग्रंथमा ग्रंथकारे संवतनो उल्लेख कर्यों छे. छतां पण केटलाक विद्वानो ते मानवा तैयार नथी. जाणे पोते जे शैली जे | कालनी निश्चित करी छे ते पहेलानां काळमां ए शैली होय ज नहीं. आम अहंमानी विद्वानो बधी शताब्दीओनी शैलीना ज्ञाता होय तेवो डोळ करे छे. मारूं तो मानवु छ के जेटली स्पष्ट सामग्री मळे तेटलो ज ईतिहास लखे ता खोटो प्रचार थवा पामे नहीं. नियुक्तिना रचनाकाळ विषे जेम भ्रम हतो अने हुयुनसंगना [चाईनीस-ह्युएन-संग] लखाण उपर विश्वास मूकीने भर्तृहरि माटे केटलो बधो भ्रम फेलाववामां आव्यो हतो ते आजे प्राचीन ग्रंथोनी ॥४॥ Jain Education Inter! For Private & Personel Use Only jainelibrary.org

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