Book Title: Nandisutram Author(s): Devvachak, Malaygiri Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund View full book textPage 4
________________ श्रीनन्दिसूत्रम् । ॥४॥ किंश्चिद् वक्तव्य। 'किंचिद् वक्तव्य' प्रस्तुत ग्रंथ ज्यारे पाठकोना हाथमा आवशे त्यारे पहेला फर्माना मुद्रणने लगभग १५ थी १६ वर्ष परिपूर्ण थइ चूक्यां हशे. आम सारो एवो काळ पसार करीने आ ग्रंथ बहार पडे छे. आ साथे 'दुर्गपदव्याख्या' पण छपाववानी हती अने तेनो प्रथम फर्मों तैयार पण थइ गयो छे जे आ साथे मुक्यो छे. पण नंदीनी पू. हरिभद्रसरि मनी पुनर्मु द्रित टीकामां ते व्याख्या छपाइ गइ होवाथी एक फर्मो जे तैयार हतो तेटलो ज आपीने आगळ काम साथे जोडवानो निर्णय कर्यों छे. वळी प्रति तेमज प्रेसना कारणे घणी अशुद्धिओ थवा पामी छे. पण नवमुद्रित चूर्णि तेमज टीकाने साथे राखीने तैयार करी शुद्धिपत्रक अंतमा आप्यु छे. आ ग्रंथनु शुद्धिपत्रक तैयार करवामां मुनि जिनभद्रविजयजीए सारो परिश्रम उठाव्यो छे. अंते आ ग्रंथ आटला वखते पण छपाइने बहार पडयो छे तेथी ज संतोष अनुभववो रहे छे. प्रस्तुत ग्रंथनी प्रस्तावना पण पांच वर्ष पहेला लखाइ चूकी हती. तेभां पण पुनः प्रेसकोपी करती वखते घणो सुधारो वधारो करवामां आव्यो छे, अने समयना अभावे ईतिहास विभागनी चर्चा तो अति संक्षिप्तमांज करी देवी पडी छे. बेंगलोर संवत २०२५ आचार्य विक्रमसूरि महावीर जन्म वांचन दिन ॥४॥ Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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