Book Title: Naishadhiya Charitam Author(s): Harsh Mahakavi, Sanadhya Shastri Publisher: Krishnadas Academy Varanasi View full book textPage 7
________________ अभिस्वीकृति देवभारती के अमर महाकवि श्रीहर्ष के गौरवग्रन्थ महाकाव्य 'नषधीय चरित' के प्रति किशोरावस्था में जो चपल-अनुराग उत्पन्न हो गया था, जीवन की संध्यावेला नियराने पर 'नैषध' के इस हिन्दी रूप में उसीका विकास हो गया है, और यदि मैं कहूँ कि इस रूप में मेरी एक अत्यन्त प्रिय आकांक्षा की पूर्ति हो रही है, तो अवांछित न होगा। यह 'मुगालता' ( भ्रम ) मुझे नहीं है कि मैं 'नैषध' की व्याख्या का दुःसाहस कर रहा हूँ और श्रीहर्ष के पाठकों को कुछ नवीन और अनवद्य दे रहा हूँ। न तो मेरी क्षमता ही इतनी है और न प्रतिभा ही। मैं निःसंकोच आभार व्यक्त कर रहा हूँ उन सभी प्राचीन और अर्वाचीन 'नैषधपरिशीलन' के धन्य विद्वज्जनों के प्रति, जिनका मार्गदर्शन मेरा संवल है। उनकी सूची लंबी है। वे सब हार्दिक श्रद्धा के साथ मेरा अभिवादन और कृतज्ञता-ज्ञापन ग्रहण कर लें तो मैं अपने को धन्य मानूंगा। मैंने तो जो ये 'सफेद कागद काले' कर दिये उस अखिल को मैं अपना चापल ही मानता हूँस ब्रह्मा चतुराननः स भगवानीशोऽपि पञ्चाननः स स्कन्दश्च षडाननः स फणिनामीशः सहस्राननः । यत्पद्यार्थविशेषवर्णन विधौ नेशाः वयं तत्र के __यद् व्याख्यायि तथापि किञ्चिदखिलं तच्चापलं केवलम् ।। श्रीहर्ष तो अथाह सागर हैं, उनका जल चाहे जितने बादल लेते रहें, उसमें तो बूंद भर कमी न आयेगी : दिक्कूलङ्कषतां गतर्जलधरैरुद्गृह्यमाणं मुहुः । पारावारमपारमम्बु किमिह स्याज्जानुमात्रं क्वचित् ? ॥ और यह अन्याय ही होगा संस्कृत-वाङ्मय के एकनिष्ठ अनुरागी श्रीविठ्ठलदास गुप्त के प्रति यदि मैं उनकी कल्याण कामना न करू 'नैषधीयचरित' को इस रूप में लाने के निमित्त उनके साहस और सामर्थ्य पर । उनके विश्रुत 'प्रकाशन' से यह प्रकाश पा रहा है, उन्हें श्रेय भी प्राप्त हो और प्रेय भी। तथास्तु । गुरुपूर्णिमा वि० सं० २०४१ -देवर्षि सनाढ्यPage Navigation
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