Book Title: Matruka Prakaranam
Author(s): 
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 23
________________ 27 स्वरोष्मका विवृताः । अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ । श ष स ह ॥१५५।। विवृततरावेदोतौ । ए ओ ॥१५६॥ विवृततमा ऐ च औ च ॥१५७।। विवृते जायते श्वासः ॥१५८|| संवृते नाद एव च ॥१५९॥ एतावनुप्रदानत्वे सद्भिः कैश्चिदगीयेताम् । "श्वास-नादावनुप्रदाने" इति केचित् ॥१६०।। अनु-प्रदीयते नाद-स्तथाभूते यदा ध्वनौ । घोषता भवति (१६१), श्वासानुप्रदाने त्वघोषता ॥१६२॥ प्रथमे श-ष-साश्चैव - ईषच् श्वासतया स्थिताः । __ क च ट त प, श ष स ॥१६३॥ द्वितीयाः स्युर्बहुश्वासाः ; ख छ ठ थ फ ॥१६४।। अघोषास्ते त्रयोदश ॥ क ख च छ ट ठ त थ प फ श ष स ॥१६५।। महाघोषाश्चतुर्थाः स्युः पञ्चमान्तस्थमेव हः । घ ङडा झ)ञ ढ ण ध न भ म य र ल व ह ॥१६६।। स्वल्पघोषास्तृतीयास्तु , ग ज ड द ब ॥१६७|| ख्यातो घोषवतां गणः ।। ग घ ङ ज झ ञ ड ढ ण द ध न ब भ म य र ल व ह ॥१६८॥ अल्पप्राणत्वमेतेषा-मल्पे मरुति निश्चितम् ।। क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ सय र ल व ॥१६९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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