Book Title: Matruka Prakaranam
Author(s): 
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 36
________________ अ इ उ ऋ लृ ए ऐ ओ औ । ङय व रल ! ङक खघ ग, ञ च छ झ ज, ण ट ठ ढ ड, न त थ ध द, म प फ भ ब, श ष स ॥ २५० ॥ एकैकवर्णोद्धारेण वियद् वाताग्निवार्भुवः ॥ व्योम १| वायुः २। अ ए ह ङ ञ ण न म श इ ऐ य क च ट त प ष उ ओ व ख छ ठ थ फ श ऋ औ र घ झ ढ ल ल ग ज ड द ध भ 40 ब Ad Jain Education International भौतीयम् ॥२५१॥ - - 7 अग्निः ३ | जलम् ४। पृथिवी ५। ऐं नमः ॥ अकार मौलिमिलिताऽसि मञ्जुलं, त्वमेव मातर्विपुलामलश्रिया ॥ २५२ ॥ त्वदास्यमातंस्तुमहेतरां भृश- प्रसन्नशोचिः श्रुतदेवते ! वयम् ॥२५३॥ इवर्णनेत्रा जगतीर्विलोकसे (२५४), उवर्णकर्णे शृणु सेवकोऽस्म्यहम् । (२५५ ) ॠवर्ण - घोणाऽसियश: सुमार्चना ( २५६), लुवर्णगंङां (ण्डां ?) भवती जिनो गतः ॥ ( २५७) मदीयमेदैद्दश नालियामला दुरूहमागः कुरु चारुचर्षणा । सपरिमिव एओ नयाविनाशात् ऊद्धर्वमधश्च ( ? ) ॥२५८॥ पटिष्ठमोदौद्विदितौष्टिचेष्टतां भवत्यरित्रासकरी वरीयसी । ॥ २५९ ॥ ब्रवीष्यनुस्वाररसज्ञया प्रियं वच: (२६०) वहन्त्यब (म्ब) विसर्गकन्धराम् । वर्त्तस इत्यध्याहारः ॥ २६१ || तमोऽम्बु तर्त्तुं भजसे भुजौकुभू (जू) ; - क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ मिति ॥ २६२ ॥ , शिवाध्वगायाश्चरणौ टु-तू तव । + ट ठ ड ढ ण त थ द ध न मिति ॥ २६३ ॥ पण प्रसूतिः पफ कुक्षिरीक्ष्यसे; सर्वत्रोभयं दक्षिण - वामतः ॥ २६४ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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