Book Title: Matruka Prakaranam
Author(s):
Publisher: ZZ_Anusandhan
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चतुष्कं शेषमित्यष्ट - षष्टिस्ते लिखनान्तरे ॥
अ अ आ आँ इ ई उ उ ऊ ऊँ ऋ ऋ ॠ ल ल ल लें ए एँ ऐ ऐ ओ ओँ औ औं । क ख ग घ ङ च छ ज झ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य य र ल लँ व व श ष स अं अः)( क - प ॥१९४॥
अनुनाशिकेऽग्रगेऽपि स्वरः समर्थोऽनुनाशिकत्वाय ॥ _ 'अपि'शब्दात् स्वतश्च ।
साम सामँ । दधि दधिं। मधु मधु । कर्तृ कर्तृ । प्रियक्ल प्रियक्तूं। भवाँश्चारुः । इत्यादि ॥१९५॥
. य-व-लं नानुस्वारजम् ।। . . भ वा लें लिखति १। स यूँ यं त । स - वत्सरः । य लँ लोकं ।२॥१९६॥
एषां लिपिरर्द्धबिन्दुमती । इदमेव लिखनान्तरत्वे फलम् ॥१९७।। स्थानवृद्धिय॑नक्त्येतां गौणत्वेऽपि न तुच्छता ।
अस्त्यर्ककिरणक्रान्तेः काचे काचीयतापि यत् ।।
अत: - अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ । क ख ग घ, च छ ज झ ट ठ ड ढ त थ द ध, प फ ब भ, य र ल व श ष स ह, अः )( क प इति मुख्याः ॥ अँ आँ इँई उँॐ लँ एँ एँ आँ औं ङञ ण न म यँ लँ वँ इति मुखनाशिक्याः ॥ अंनाशिक्यः ।।
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल । क ख ग घ च छ ज झ ट ठड ढ त थ द ध प फ ब भ य र ल श ष स ह अं अः )( क प इत्येकस्थानीयाः । __अँ आँ इँई उँऊँ लँ लँ ए ऐ ओ औ ङञ ण न म यं लं व इति द्विस्थानीयाः ॥ एँ एँ औं इति त्रिस्थानीयाः ॥१९८॥
अवर्णादे: स्वरस्याप्ता हस्व-दीर्घ-प्लुतैस्त्रिता । उदात्तत्वेऽनुदात्तत्वे स्वरितत्वे स्थिता पृथक् ॥ तेषामप्युभयी मुख्य-मुखं नाशिक्यभावतः ।
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