________________
मंगलाचरण एवं प्रतिज्ञा
काली गणाना या चाकोर का
भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा मुद्द्योतकं दलित-पाप-तमोवितानम्। सम्यक् प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादावालम्बनं भव-जले' पततां जनानाम् ॥1॥ यः संस्तुतः सकल-वाङ्मय-तत्त्व-बोधादुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुर-लोक-नाथैः ।
स्तोत्रैर्जगत्त्रितय-चित्त-हरैरुदारैः, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्॥2॥
अन्वयार्थ (भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणां) नतमस्तक भक्त देवों के मुकुटों में जड़ित मणियों की किरणों के (उद्द्योतकं) प्रकाशक, (दलित-पाप-तमोवितानं) पापरूप अन्धकारप्रसार के विनाशक तथा (युगादौ)युगारंभ में (भव-जले पततां जनानां) संसाररूप जल में डूबने वाले लोगों के (आलम्बनं) आश्रय-स्वरूप (जिन-पाद-युगं) भगवान् जिन के चरण-युगल को (सम्यक्) भली भाँति (प्रणम्य) प्रणाम करके, (अहं अपि)मैं भी (तं प्रथमं जिनेन्द्र) उन प्रथम तीर्थंकर की (किल स्तोष्ये) अवश्य स्तुति करूंगा, (य:) जो (सकल-वाङ्मय-तत्त्व-बोधात्) सर्व शास्त्रों के तत्त्वज्ञान से (उद्भूत-बुद्धिपटुभिः) उत्पत्र हुई बुद्धि के कारण चतुर (सुर-लोक-नाथैः) स्वर्ग के इन्द्रों द्वारा (जगत्रितय-चित्त-हरैः) त्रि-भुवन मनोहारी (उदारैः स्तोत्रैः) महान् स्तुतियों से (संस्तुत:) अच्छी तरह वन्दित हुए थे।
1 भव-निधौ