Book Title: Mantung Bharti
Author(s): Dhyansagar
Publisher: Sunil Jain

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Page 20
________________ | यह स्तुति आपकी होने के कारण मनमोहक बनेगी। आपकी स्तुति क्या? आपकी तो चर्चा ही पाप-नाशिनी है। मत्वेति नाथ! तव संस्तवनं मयेदमारभ्यते तनु-धियापि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतां नलिनी-दलेष, मुक्ता-फल-द्युतिमुपैति ननूद-बिन्दुः॥8॥ अन्वयार्थ (इति मत्वा)ऐसा जान कर (नाथ)हे नाथ! (तनु-धिया अपि मया) अल्प-बुद्धि होकर भी मेरे द्वारा (तव) आपकी (इदं संस्तवनं) यह स्तुति (आरभ्यते) प्रारंभ की जाती है, जो (तव प्रभावात्) आपके प्रभाव से (सतां चेतः) सत्पुरुषों के मन को (हरिष्यति) हर लेगी। (ननु) इसमें सन्देह नहीं कि (नलिनी-दलेष) कमलिनी के पत्तों पर (उद-बिन्दुः) पानी की बूंद (मुक्ता-फल-द्युति) मोती की कान्ति को (उपैति) प्राप्त हो जाती है। आस्तां तव स्तवनमस्त-समस्त-दोषं, त्वत्सङ्कथापि जगतां दुरितानि हन्ति। दूरे सहस्त्र-किरणः कुरुते प्रभैव, पद्माकरेषु जलजानि विकासभाञ्जि ॥9॥ अन्वयार्थ (अस्त-समस्त-दोषं)नष्ट हो चुके हैं सब दोष जिसके अर्थात् जो निर्दोष है, ऐसी (तव स्तवनं) आपकी स्तुति (आस्तां) दूर रहे, (त्वत्सङ्कथा अपि) आपकी चर्चा भी (जगतां) तीनों जगत के (दुरितानि) पापों को (हन्ति) नष्ट करती है। (सहस्रकिरण: दूरे) सूर्य दूर रहा, (प्रभा एव) उसकी किरण ही (पद्माकरेषु) सरोवरों में (जलजानि) कमलों को (विकासभाजि कुरुते) विकसित कर डालती है। पद्यानुवाद इसीलिये मैं मन्द-बुद्धि भी करूँ नाथ! तव स्तुति प्रारंभ, तव प्रभाव से चित्त हरेगी सत्पुरुषों का यह अविलंब। है इसमें संदेह न कोई पत्र कमलिनी पर जिस भाँति, संगति पाकर आ जाती है जल-कण में मोती-सी कान्ति॥ पद्यानुवाद दूर रहे स्तुति प्रभो! आपकी दोष-रहित गुण की भण्डार, तीनों जग के पापों का तव चर्चा से ही बंटाढार। दूर रहा दिनकर पर उसकी अति बलशाली प्रभा विशाल, विकसित कर देती कमलों को सरोवरों में प्रात:काल॥ अन्तर्ध्वनि मैं मति-मन्द होते हुए भी आपकी स्तुति को पाप-नाशक जान कर प्रारंभ करता हूँ । आपके प्रभाव से यह सर्व-जन-प्रिय बनेगी, शब्द भले ही मेरे रहे आयें। कमलिनी के पत्ते पर पड़ी जल की बूंद मोती-सम जगमगा उठती है । संगति का प्रभाव अवश्य पड़ता है। अन्तर्ध्वनि हे स्वामी ! मैं अपने पूर्व-कथन में संशोधन करता हूँ। आपकी निर्दोष स्तुति तो दूर रही, आपकी चर्चा ही सारे जग के पापों का नाश करने वाली है। जब सूर्य की किरण ही सरोवरों में कमलों को प्रफुल्लित करने में समर्थ है, तब सूर्य के प्रभाव का क्या कहना? अत: आपकी स्तुति की महिमा तो निराली ही होनी चाहिये। 1.प्रसादात्

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