Book Title: Mantung Bharti
Author(s): Dhyansagar
Publisher: Sunil Jain

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Page 28
________________ Aadhe.COULD Anandsapna ATMELESnel 825 आपकी सभी संज्ञाएँ सार्थक हैं। , आप ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश व बुद्ध हैं। गुलRama YLFGHA yari सावी त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यं, ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनङ्ग-केतुम्। योगीश्वरं विदित-योगमनेकमेकं, ज्ञान-स्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः ।। 24॥ बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित-बुद्धि-बोधात्त्वं शङ्करोऽसि भुवन-त्रय-शङ्करत्वात्। धातासि धीर ! शिव-मार्ग-विधेर्विधानाद्व्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ॥25॥ अन्वयार्थ (सन्तः) सत्पुरुष (त्वां) आपको (अव्ययं) अव्यय, (विभुं) विभु, (अचिन्त्यं) अचिन्त्य, (असंख्य) असंख्य, (आधु) आद्य, (ब्रह्माणं)ब्रह्मा, (ईश्वरं) ईश्वर, (अनन्तं) अनंत, (अनङ्ग-केतुं)अनंग-केतु (योगीश्वरं) योगीश्वर, (विदितयोग) विदित-योग, (अनेकं)अनेक,(एक) एक, (ज्ञान-स्वरूप) ज्ञान-स्वरूप एवं (अमलं) अमल (प्रवदन्ति) पुकारते हैं। अन्वयार्थ (विबुधार्चित-बुद्धि-बोधात्) देवों, विद्वज्जनों के द्वारा पूजित-बुद्धि का विकास होने से (त्वं एव) आप ही (बुद्धः) बुद्ध हैं। (भुवन-त्रय-शङ्करत्वात्)तीनों जगत् के लिये आनन्दकारी होने से (त्वं) आप (शङ्करः असि) शंकर हैं। (धीर)हे धीर ! (शिव-मार्ग-विधेः)मोक्षमार्ग का अनुष्ठान (विधानात्)करने से (धाता असि)आप धाता-ब्रह्मा हैं। (भगवन्) हे भगवन् । (त्वं एव) आप ही (व्यक्त) स्पष्टत: (पुरुषोत्तमः असि) पुरुषोत्तम नारायण हैं। पद्यानुवाद अव्यय, विभु, अचिन्त्य, संख्या से परे, आद्य-अरहंत महान, जगब्रह्मा, ईश्वर, अनंत-गुण, मदन विनाशक अग्नि-समान। योगीश्वर, विख्यात ध्यानधर, जिन! अनेक होकर भी एक, ज्ञान-स्वरूपी और अमल भी तुम्हें संतजन कहते नेक॥ अन्तर्ध्वनि सन्तजन कारणवश आपको यह पन्द्रह संज्ञाएँ देते हैं। आप परमात्म-स्वरूप का विनाश न होने से 'अव्यय', समर्थ होने से 'विभु', मन द्वारा चिन्तन के अगोचर होने से 'अचिन्त्य,' वचन द्वारा कथन के अगोचर होने से 'असंख्य', प्रथम तीर्थकर होने से 'आद्य',कर्मभूमि के सृष्टिकर्ता होने से अथवा ब्रह्मानंद में लीन होने से 'ब्रह्मा',उत्कृष्ट ऐश्वर्य-संपन्न होने से 'ईश्वर', अनंत चतुष्टय के धारक होने से 'अनन्त',अग्नि के समान काम को भस्म करने से 'अनंग-केतु',योगियों के स्वामी होने से 'योगीश्वर', विख्यात ध्यान-धारी होने से विदित-योग', नित्यानित्यादि अनेक रूप होने से 'अनेक',अद्वितीय होने से 'एक', ज्ञान-स्वभावी होने से 'ज्ञान-स्वरूप' तथा घातिया कर्मरूपी पाप-मल से रहित होने से 'अमल' कहलाते हैं, अत: आप यथानाम तथागुण हैं। पद्यानुवाद तुम्हीं बुद्ध हो क्योंकि सुरों से, पूजित है तव केवलज्ञान, तुम्हीं महेश्वर शंकर जग को, करते हो आनन्द प्रदान। तुम्हीं धीर! हो ब्रह्मा आतम-हित की विधि का किया विधान, तुम्हीं प्रगट पुरुषोत्तम भी हो हे भगवन्! अतिशय गुणवान। अन्तर्ध्वनि हे धीर-वीर भगवन् | आप ही देवों द्वारा पूजित बुद्धि-बोध अर्थात् ज्ञान के विकास वाले बुद्ध हैं, जगत् को आनंदित करनेवाले शंकर हैं, विधि का अर्थात् मोक्षमार्ग का विधान करनेवाले विधाता ब्रह्मा हैं तथा स्पष्टत: पुरुषोत्तम नारायण हैं। मुझे अपने आराध्य में सभी के दर्शन प्राप्त हो रहे हैं।

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