Book Title: Mantung Bharti
Author(s): Dhyansagar
Publisher: Sunil Jain

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Page 48
________________ 68 नमिऊण-स्तोत्रम् नमिऊण-स्तोत्रम् -(मूल)उवसग्गंते कमठासुरम्मि झाणाउ जो न संचलिओ। सुर-नर-किन्नर-जुवईहिं संथुओ जयउ पास-जिणो ॥22॥ -(मूल) एअस्स मज्झयारे अट्ठारस-अक्खरेहि जो मंतो। जो जाणइ सो झायइ परम-पयत्थं फुडं पासं॥23॥ (कमठासुरम्म उवसगते) कमठासुर के उपसर्ग-पर्यन्त (जो) जो (झाणाउ) ध्यान से (संचलिओ) विचलित (न) नहीं हुए, ऐसे (सुर-नर-किन्नर-जुवईहिं) देव, मनुष्य और किन्नरियों द्वारा (संधुओ) वन्दित (पास-जिणो) पार्श्व-जिन (जयउ) जयवन्त हों। (एअस्स) इस स्तोत्र के (मज्झयारे) मध्य (जो मंतो) जो मंत्र (अट्ठारस अक्खरेहि) अठारह अक्षरों से निष्पन होता है, उसे (जो जाणड) जो जानता है. (सो) वह मनुष्य (परम-पयत्थं पासं) परम-पदासीन पार्श्व-प्रभु का (फुड) विशदरूप से (झायइ) पदस्थ-ध्यान करता है। (पद्यानुवाद 22) - कमठासुर ने सात दिनों तक, जब उपसर्ग किया भारी, नहीं डिगे तब ध्यान-योग से, कठिन-तपस्या के धारी। सुर-नर-किन्नारियों से वन्दित, पार्श्व-जिनेश्वर जगनामी, हो नित जय-जयकार आपकी, हे उपसर्गजयी-स्वामी ! - (पद्यानुवाद) इसी स्तोत्र में अष्टादश शुभ, वर्णों से बनने वाला, एक मंत्र है, जो पहचाने, वह जपता उसकी माला। है पदस्थ यह ध्यान परम-पद-भूषित पार्थ जिनेश्वर का, भक्त समय का छोड़ अपव्यय, जप जपता परमेश्वर का।

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