Book Title: Mantung Bharti
Author(s): Dhyansagar
Publisher: Sunil Jain

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Page 41
________________ प्रस्तावना महामंत्र णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं जैन-वाङ्मय में स्तोत्र-साहित्य अङ्गबाह्यश्रुत का विषय माना जाता है। समन्तभद्र स्वामी स्वयंभूस्तोत्र में कहते हैं : गुणस्तोकं सदुल्लङध्य तद्बहुत्व-कथा स्तुतिः। अर्थात् विद्यमान अल्प-गुणों का उल्लंघन कर उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर कहना, स्तुति है। आचार्य जिनसेन स्वामी आदिपुराण में कहते हैं:"स्तुति: पुण्यगुणोत्कीर्तिः" अर्थात् स्तुत्य के पवित्र गुणों का उत्कीर्तन करना, स्तुति है। दिगम्बरआम्नाय में विश्रुत स्तुतियां प्राय: संस्कृत भाषा में निबद्ध हैं। कुछ स्तुतियाँ प्राकृतभाषा में भी हैं। दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों वर्गों में कतिपय स्तोत्र समानरूप से मान्य हैं। देश-भाषीय स्तुतियाँ उत्तरकालीन रचनाओं में अन्तर्भूत हैं। कुछ विख्यात स्तोत्रों के नाम इस प्रकार हैं:- (1) स्तुति-विद्या (2) देवागम-स्तोत्र (3) स्वयंभू-स्तोत्र (4) शान्त्यष्टक (5) अकलङ्क स्तोत्र (6) भक्तामर स्तोत्र (7) कल्याणमन्दिर-स्तोत्र (8) एकीभाव-स्तोत्र (9) जिन-सहस्रनामस्तोत्र (10) सिद्धिप्रिय-स्तोत्र (14)भूपाल- चतुर्विंशतिका (15) ऋषिमण्डल-स्तोत्र (16) महावीराष्टक-स्तोत्र (17) सुप्रभात स्तोत्र (18) लघु तत्त्व-स्फोट (19) विषापहार स्तोत्र इत्यादि। भक्तामरकार की एक अन्य अप्रसिद्ध रचना प्रस्तुत नमिऊण स्तोत्र अपरनाम भयहर-संथवो है, जो भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी की प्राकृत स्तुति है। प्रभावक चरित के कर्ता प्रभाचन्द्र एवं गुणाकर सूरि इस स्तोत्र को भक्तामरकार का ही बताते हैं। इसकी प्राचीनतम प्रति 13 वीं शती की है, जो खंभात के शान्तिनाथ जैन भण्डार में है। 14 वीं शती से 17 वीं शती पर्यन्त इस पर लगभग 8-10 वृत्तियाँ और अवचूरियाँ रची गयीं। यह कार्य श्वेताम्बर-आम्नाय द्वारा निष्पन्न हुआ। कुछ विद्वानों का मत है कि यह रचना आचार्य मानतुङ्ग स्वामी ने अपनी पूर्वावस्था में की। इसकी प्राचीनतम प्रति में 21 गाथाएँ हैं। प्रस्तुत अनुवाद में 23 गाथाएँ और । दोहा, इस प्रकार कुल 24 पद्य समन्वित हैं। भक्तामर एवं भयहार में जो

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