Book Title: Manonushasanam Author(s): Tulsi Acharya Publisher: Adarsh Sahitya Sangh View full book textPage 7
________________ भूमिका आत्मा का सिद्धान्त स्थिर हुआ, तव उसके विकास की दृष्टि भी प्राप्त हुई। विकास के साधनो का अन्वेषण किया गया। एक शब्द मे उसे मोक्ष-मार्ग या योग कहा गया। मोक्ष-मार्ग या योग कोई पारलौकिक ही नही है, वर्तमान जीवन मे भी जितनी शान्ति, जितना आनन्द और जितना चैतन्य स्फुरित होता है, वह सब मोक्ष है। आचार्य उमास्वाति के अनुसार-'जिसने अहकार और वासनाओ पर विजय प्राप्त कर ली, मन, वाणी और शरीर के विकारो को धो डाला, जिनकी आशा निवृत्त हो चुकी, उन सुविहित आत्माओ के लिए यही मोक्ष है। आत्मा की सहजता ही मोक्ष है। वह पूर्ण होती है तो मोक्ष पूर्ण होता है, वह अपूर्ण होती है, तो मोक्ष अपूर्ण होता है। वर्तमान जीवन मे मोक्ष नही होता, वह अगले जीवन में ही होता है-ऐसा नहीं होता। इन्द्रिय और मन का वशीकरण ही मोक्ष-मार्ग है। वह अनुशासन से प्राप्त होता है। वल-प्रयोग से वे वशवर्ती नही किए जा सकते। हठ से उन्हें नियंत्रित करने का यत्ल करने पर वे कुण्ठित बन जाते है। उनकी शक्ति विकसित तभी हो सकती है, जब वे प्रशिक्षण के द्वारा अनुशासित किए जाए। स्वाध्याय और ध्यान उनके प्रशिक्षण के प्रमुख साधन है। स्वाध्याय इस युग का प्रधान तत्त्व है और ध्यान विलुप्त तत्त्व। स्वाध्याय भी जितना वुद्धि को विकसित करने का साधन है उतना मन को अनुशासित करने १ प्रशमरति, २३० निर्जितमदमदनाना वाक्कायमनोविकाररहितानाम् । विनिवृत्तपराशानामिहैव मोक्ष सुविहितानाम् ॥Page Navigation
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