Book Title: Mahavira Vardhaman
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Vishvavani Karyalaya Ilahabad

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Page 19
________________ महावीर वर्धमान नवजात शिशु के जातकर्म आदि संस्कार किये गये, और ग्यारहवें दिन सूतक मनाने के पश्चात्, बारहवें दिन मित्र, जाति, स्वजन, संबंधियों et निमंत्रितकर विपुल भोजन, पान, तांबूल, वस्त्र, अलंकार आदि से उन का सत्कार किया गया। तत्पश्चात् सिद्धार्थ क्षत्रिय ने उठकर सब के समक्ष कहा, “भाइयो ! इस बालक के जन्म से हमारे कुल मे धन, धान्य, कोष, कोठार, सेना, घोड़े, गाड़ी आदि की वृद्धि हुई है अतएव बालक का नाम वर्धमान रखना ठीक होगा ।" सब ने इस का अनुमोदन किया । तत्पश्चात् अनेक दाइयों और नौकर-चाकरों से परिवेष्टित होकर वर्धमान बड़े लाड़-प्यार से पाले गये और सुरक्षित चंपक वृक्ष के समान बड़े होने लगे । १४ वर्धमान बचपन से ही बड़े वीर, धीर और गंभीर प्रकृति के थे, और वे कभी किसी से डरते न थे । एक बार वर्धमान अपने साथियों के साथ एक वृक्ष के पास खेल रहे थे। इतने में उन के साथियों ने देखा कि वृक्ष की जड़ में लिपटा हुआ एक विकराल सर्प फुकार मार रहा है। यह देखकर वर्धमान के साथी वहाँ से डर के मारे भाग गये, परन्तु वीर वर्धमान अचल भाव से वहीं डटे रहे और उन्हों ने सर्प को अपने हाथ से पकड़कर दूर फेंक दिया। संभवतः इसी प्रकार के अन्य संकटों के समय अपनी दृढ़ता और निर्भयता प्रदर्शित करने के कारण वर्धमान महावीर कहे जाने लगे । वर्धमान अध्ययन के लिये पाठशाला में गये जहाँ उन्हों ने अपनी असाधारण बुद्धि का परिचय दिया । वर्धमान के अध्यापक उन के विद्वत्तापूर्ण उत्तरों से चकित होकर उन की भूरि भूरि प्रशंसा करते थे । वर्धमान ने छोटी उमर में ही व्याकरण, साहित्य श्रादि विषयों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था । महावीर तीस वर्षं गृहस्थाश्रम में रहे श्रौर उन्हों ने अनेक प्रकार के भोगों का सेवन किया ।' क्षत्रियकुमार होने के कारण महावीर बहुत सुखों में ६ दिगंबर मान्यता के अनुसार महावीर अविवाहित रहे

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