Book Title: Mahavira Vardhaman
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Vishvavani Karyalaya Ilahabad

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Page 41
________________ ३६ महावीर वर्धमान कि ओह । उस बिचारे का क्या हाल होगा। राजा भी वही सोया हुआ था । उस ने जब ये वाक्य सुने तो उसे सदेह हुआ कि चेलना ने किसी परपुरुष 'को संकेत स्थान पर बुलाया है और संभवत अब वह न आ सकेगा, इसीलिये यह ऐसा कह रही है । प्रात काल श्रेणिक ने अपने मंत्री अभयकुमार को बुलाकर समस्त प्रत पुर जला देने की आज्ञा दी, और स्वयं अपनी शका दूर करने के लिये महावीर के पास पहुँचा। वहाँ जाकर श्रेणिक को मालूम हुआ कि चेलना पतिव्रता है। इस पर उस ने अपना सिर धुन लिया । परन्तु कुशल मंत्री अभयकुमार ने अभी तक अत पुर नही जलाया था । अभयकुमार को राजा श्रेणिक के इस निन्द्य बरताव पर बडी घृणा हुई, उसे ससार से वैराग्य हो आया, और उस ने महावीर के चरणो मे बैठकर दीक्षा ले ली । अभयकुमार की इस दीक्षा मे निस्सन्देह एक बडा भारी रहस्य था, बडी वेदना थी, जिस का अर्थ है कि स्त्री जाति के चरित्र को कलकित करनेवाला, उस के विषय में शकाशील रहनेवाला पुरुष चाहे वह कोई भी हो अधम है और उसकी चाकरी में रहना योग्य नही । यद्यपि इस संबध मे यह बात न भूलना चाहिये कि तत्कालीन वातावरण के प्रभाव के कारण जैन ग्रंथ स्त्री - निन्दा से अछूते न रह सके, जिस का एक प्रधान कारण था साधुओ को सयम में स्थिर रखना । जो कुछ भी हो अपने मघ मे स्त्री को मुख्य स्थान देकर महावीर ने स्त्री जाति का महत्त्व स्वीकार किया था । पालि ग्रन्थो मे आता है कि कोशल के राजा प्रसेनजित् के घर जब कन्या का जन्म हुआ तो राजा बहुत उदास हुआ, उस समय बुद्ध ने उसे समझाया कि हे राजन् ! पुत्री बडी होकर बुद्धिशाली और सुशीला होकर पतिव्रता हो सकती है, और गुणवान् पुत्र को जन्म देकर ममार का महान् कल्याण कर सकती है, अतएव तू अपनी पुत्री का अच्छी तरह पालन-पोषण कर ।" निस्सन्देह महावीर और बुद्ध ने स्त्री जाति को ऊँचा उठाकर 'संयुत्तनिकाय ३२,६ GO वही, पीठिका, पृ० ५७-८ ६०

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