Book Title: Mahavira Vardhaman
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Vishvavani Karyalaya Ilahabad

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Page 60
________________ महावीर और बुद्ध की तुलना पुत्र कहे जाते थे। बुद्ध ज्ञानी थे और वे तथागत कहे जाते थे। महावीर देहदमन और तपश्चर्या पर जोर देते थे और वे एकांत स्थानों में जाकर तपस्या करते थे। बुद्ध ने भी साधु-जीवन में अचेलक रहकर नाना तपस्याओं द्वारा शरीर का दमन किया था, परन्तु ज्ञान होने के पश्चात् उन्हों ने कायक्लेश तथा सांसारिक सुखभोग इन दोनों अन्तों को त्यागकर मध्यममार्ग का उपदेश दिया था। महावीर नाना व्रत-उपवास आदि द्वारा प्रात्म-दमन, इच्छा-निरोध और मानसिक-संयम पर भार देते थे जब कि बुद्ध चित्तशुद्धि के लिये सम्यक् प्राचार, सम्यक् विचार आदि अष्टांग मार्ग का उपदेश करते थे। महावीर अपने शिष्यों की बाह्य जीवनचर्या पर नियंत्रण रखते थे, जब कि बुद्ध चित्तशुद्धि पर भार देते थे। महावीर आत्मोद्धार के लिये सतत प्रयत्नशील रहते थे, लोक-समाज से जहाँ तक बने दूर रहते थे, और आत्मत्याग पर भार देने से उन का धर्म आत्मधर्म कहलाया। बद्ध इसके विपरीत, सम्यक आचार-विचार को जीवन में मुख्य मानते थे, और समाज मे हिलते-मिलते थे, अतएव उन का धर्म लोकधर्म कहलाया। महावीर ने अहिसा को परम धर्म बताते हुए प्राणिमात्र की रक्षा का उपदेश दिया। बुद्ध ने भी अहिंसा को स्वीकार किया परन्तु उन्हों ने दया और सहानुभूति को मुख्य बताया। महावीर और बुद्ध दोनों महान् विचारक थे; महावीर ने आत्मा, मोक्ष आदि के विषय में अपने निश्चित विचार प्रकट किये थे, जब कि बुद्ध नैरात्म्यवादी थे और वे दुःख, दुःखोत्पाद, दुःखनिरोध और दुःखनिरोध-मार्ग इन चार आर्यसत्यों द्वारा सम्यक् आचरण का उपदेश देते थे। इस प्रकार हम देखते है कि महावीर और बुद्ध दोनों ही अपने समय के नवयुग-प्रवर्तक लोकोत्तर पुरुष थे, और दोनों ने ही अपने-अपने ढंग से जन-समाज का हित किया था। दोनों का तप और त्याग महान् था, और दोनों में लोकहित की तीव्र भावना थी। दोनों उदार थे और दोनों ने अपने विरोधियों का बड़ी सहिष्णुता से सामना किया था। महावीर ने

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