Book Title: Mahavira Vardhaman
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Vishvavani Karyalaya Ilahabad

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Page 65
________________ ६० महावीर वर्धमान इस परिस्थिति को दूर करने का एक ही उपाय है, और वह है अहिसा, तप, और त्याग के सिद्धांतों का पुनः प्रचार-मनोबल और चरित्र का संगठन । तपस्वी महावीर ने बताया था कि सच्ची अहिसा है दीन-दुखियों की, शोषितों की सेवा मे और उन के दुख मे हाथ बटाने मे, तथा सच्चा तप और त्याग है उन के उद्धार के लिये अपने आप को खपा देने में और अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने में। अपने दीन दुखी भाइयों को हमें बताना होगा कि आप लोग भी मनुष्य है, आप को भी जीने का और सुखशान्ति से रहने का अधिकार है ; जब आप अपनी सारी शक्ति लगाकर जी-तोड़ मेहनत करते है तो आप को क्यों भरपेट खाना नही मिलता ? क्यों आप की यह दीन-हीन दशा है ? रूस की क्रान्ति इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है कि मज़दूर और किसानों में कितनी महान् शक्ति है, और व अपनी मंगठित शक्ति द्वारा देश की किस प्रकार कायापलट कर सकते है। हम भी मनुष्य है, फिर हम क्यों आगे नहीं बढ़ सकते ? परन्तु इस के लिये हमें घोर तप और त्याग करना पड़ेगा, बलिदान देना पड़ेगा और जनसमाज मे जागृति पैदा करनी होगी। आज हमारी सब से महान् समस्या है राजनैतिक समस्या, इस का हल हुए बिना हम एक क़दम भी आगे नहीं बढ़ सकते। यह समस्या हल होने के बाद ही हम अपने कला, कौशल, विज्ञान तथा उद्योग-धधों की वृद्धि कर सकेंगे, अपनी संस्कृति और सभ्यता को देश-विदेशों में फैला सकेंगे, अपरिग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों का प्रचार कर सकेंगे कि शोषणवृत्ति का त्याग करने से तथा 'जीमो और जीने दो' के सिद्धांत को अमल में लाने से ही संसार में सुख और शान्ति की व्यवस्था कायम रह सकेगी। बाइबिल में एक कहानी आती है--एक बार ईसामसीह ने किसी धनाढय पुरुष को उपदेश देते हुए कहा कि यदि तुझे अपने जीवन में प्रवेश करना हो तो तू हिंसा करना छोड़ दे, परदारगमन करना छोड़ दे, चोरी मत कर, झूठ मत बोल, मातापिता का आदर कर और अपने पड़ोसियों से प्रेम रख । इस पर उस

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