Book Title: Mahavira Vardhaman
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Vishvavani Karyalaya Ilahabad

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Page 34
________________ समानता-जन्म से जाति का विरोध २६ प्राप्त कर सकता है, " अन्यथा जहाँ वह जरा ढीला पड़ा कि ऊपर से गिरकर एक दम नीचे पहुँच जाता है । इसीलिये महावीर ने कहा है कि "हे श्रमणो ! पहले अपने साथ युद्ध करो, पहले आत्मशुद्धि करो, बाहर युद्ध करने से कुछ मिलने वाला नही ।४३ तप और त्याग का मार्ग शूरों का मार्ग है; यह लोहे के चने चाबने के समान कठोर, बालुका का ग्रास भक्षण करने के समान शुष्क, गंगा नदी के प्रवाह के विरुद्ध तैरने के समान कठिन, समुद्र को भुजाओं द्वारा पार करने के समान दुस्तर तथा असिधारा पर चलने के समान भयंकर । तपस्वी जन इस मार्ग पर एकान्त-दृष्टि रखकर, अत्यन्त प्रयत्नशील होकर, अपनी समस्त प्रवृत्तियों को संकुचितकर आचरण करते हैं। " दूसरे शब्दों में, तप और त्याग का अर्थ है आत्मदमन करना, दूसरों के सुख के लिये कष्ट सहन करना, उन के कष्टनिवारण के लिये अपने सुख को न्योछावर कर देना, उन के हित में अपना हित मानना तथा अपने तप और त्याग द्वारा उन के साथ समचित्त हो जाना । महावीर ने अपने तपस्वी जीवन द्वारा हमें यही पाठ सिखाया था । इतनी उच्च भावनाये हो जाने पर निर्भयता और साहसपूर्वक कार्य करने की प्रवृत्ति मनुष्य में स्वयं श्रा जाती है । ६ समानता - जन्म से जाति का विरोध हिंसा को सामूहिक रूप देने के लिये महावीर के उपदेशों में समता के ऊपर अधिक से अधिक भार दिया गया है। उन्हों ने बताया कि अहिंसा की ०१ श्राचारांग ६.२.१८० ४२ २ सूत्रकृतांग १.३ と श्राचारांग ५.२.१५४ 'नायाधम्मका १, पृ० २८ ( बैद्य एडीशन ) ४४

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