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" स्मारिका माला का 14 वां मरिया मिला। बडी आभा है इसमें । अपने लघु परन्तु मार्के की टिप्पणी-तरंगों से उसे और भी निखार दिया है। कई ऐसे लेख हैं इसमें जो बड़े ही श्रम शोध के साथ तैयार किये गये हैं । कई नये उदीयमान लेखकों को सामने लाये हैं आप | आपके द्वारा स्मारिका सम्पादन क्या है एक मिशन है । बधाई । "
प्रतापचन्द जैन, श्रागरा
"स्मारिका सम्पादन और प्रकाशन की दृष्टि से अपने श्राप में पूर्णतया सफल है और उसके लिये आप सभी बधाई के पात्र हैं । इस स्मारिका में जहां सर्वाङ्ग सुन्दर शोध-मूलक दृष्टि के लिये उत्तेजक स्थिति दर्शक निबन्ध हैं वहां भावपूर्ण कलात्मक कवितायें भी हैं, एक कहानी और एक एकांकी भी है । अग्रेजी विभाग की रचनायें भी बड़ी ज्ञानवर्धक हैं ।"
" स्मारिका का श्राकार-प्रकार, साज-सज्जा एवं विषय वस्तु सब कुछ भव्य एवं स्पृहनीय है । अपनी अस्वस्थता के बावजूद आपने इसे सजाया संवारा है । इसके लिये आप धन्यवाद के पात्र हैं । कुछ लेख स्तर के हैं तथा उनका गवेषणात्मक महत्व है। कुल मिलाकर स्मारिका भगवान महावीर सम्बन्धी विभिन्न सूचनाओं से भरपूर है, बधाई ।"
लक्ष्मीचन्द 'सरोज' एम. ए. सम्पादक - जैन संस्कृति
बजाज खाना, जावरा (म. प्र. )
"स्मारिका गौरवपूर्ण ऐतिहासिक परम्परा को लेकर एक शोध ग्रन्थ बन गई है । सुयोग्य सम्पादन एवं सुरुचिपूर्ण मुद्रण ने चार चांद लगा दिये हैं । अनेक-अनेक धन्यवाद के साथ ।
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
डा. हरेन्द्रप्रसाद वर्मा, रीडर - भागलपुर वि. वि. भागलपुर ।
"आपका प्रतिवर्ष का यह कार्यक्रम बहुत ही सराहनीय है। जिस कार्यकुशलता के साथ स्मारिका प्रकाशित की है, वह वास्तव में प्रशंशनीय है ।
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स्मारिका के लेखों से जो अल्प समय में अनेक विषयों की जानकारी मिलती है वह कई वर्षो के अध्ययन के बाद भी नहीं मिलती । स्मारिका के लेखक धन्यवाद के पात्र हैं । आपको इस सफलता के लिये हार्दिक बधाई । "
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ज्ञानचन्द 'ज्ञानेन्द्र' साहित्यरत्न, श्रायुर्वेदाचार्य ढाना (सागर) म. प्र.
पंडित लाड़लीप्रसाद जैन सवाई माधोपुर (राज० )
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