Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1978
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 230
________________ ... ज्ञानचन्द्र संघी, भ. जगत्कीति के शिष्य-ने रामचन्द्र चौधरी-ने 1750 ई० के लगभग सं. 1798 (सन् 1741) में हिन्दी पद्य में चतुर्दशी- चतुर्विंशति, पार्श्वनाथ और महावीर पूजन की कथा की रचना की तथा एकीभावस्तोत्र की टीका रचना की थी। लिखी। टोडरमल्ल, प्राचार्यकल्प पंडितप्रवर का ग्रन्थ ___अजयराज पाटणी-ने सं.1792 में यशोधर रचनाकाल लगभग 1754 से 1768 ई० रहा चौपई की, 1793 में पार्श्वनाथ सालेट्टा तथा ज्ञात होता है-इन का महान ग्रन्थ है गोम्मटसार नेमिनाथ चरित की और 1797 में आदिपुराण की जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड, लब्धिसार एवं क्षपरणासार की रचना की थी। इनके अतिरिक्त कई फुटकर हिन्दी गद्य में वहद संयुक्त टीका सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका रचनाएँ पूजाएँ तथा पद-भजन आदि भी हैं। (45000 श्लोक परिमारण वि. सं. 1818), प्राथमिक रचनाएँ चारमित्रकथा (सं. 1781) और त्रिलोकसार वचनिका, अर्थसंदृष्टि अधिकार, प्रात्माकक्काबत्तीसी (सं. 1783) हैं। नुशासन और पुरुषार्थसिद्ध्युपाय (अपूर्ण) की वचनिबखतरामशाह-चाटसू निवासी, गोधागोत्रीय काए, मोक्षमार्गप्रकाशक, तथा आध्यात्मिक पत्र । खंडेलवाल, कही-कहीं चम्पावती निवासी लिखा है कुछ लोग ज्ञानानंदश्रावकाचार और गोम्मटसार जो चाटसू का ही अपरनाम प्रतीत होता है- पूजा भी इन्हीं के द्वारा रचित बताते हैं । इन्होंने 1743 और 1770 ई. के बीच हिन्दी पद्य में धर्मबुद्धि की कथा (सं. 1800), प्रतिमा बहत्तरी लालचंद कवि सांगानेरी-ने 1761-1785 ई० (सं. 1802), मिथ्यात्वखंडन नाटक वचनिका के बीच हिन्दी पद्य में विमलनाथ पुराण, वरांग(सं. 1821) और हिन्दी गद्य में बुद्धिविलास (सं. चरित, सम्यक्त्वकौमुदी, षट्कर्मोपदेशरत्नमाला 1827) की रचना की थी। (सं. 1818), शिखर विलास (सं.1842), तेरह महेन्द्रकोति भट्टारक (1741-58 ई०)-ने द्वीपविधान, कई अन्य पूजापाठ, आगमशतक और हिन्दी में नीरांजना काव्य की रचना की। त्रिवर्णाचार (हिन्दी-गद्य) की रचना की थी। रायमल, साधर्मी भाई का जयपुर में बहुधा . सुरेन्द्रकीति भट्टारक-(1765-1802 ई०) पुरन्द्रकात भट्टारक-( निवास रहा, पं. टोडरमल के प्ररक-प्रशंसक थे, ने जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति संग्रह का संस्कृत रूपान्तर (वि. समय लगभग 1745-75 ई० है-रचना . सं. 1833), तथा संस्कृत में ही मुनिसुव्रतपराण, हिन्दी में ज्ञानानंद-निजरसनिर्भर-श्रावकाचार तथा श्रेयांसपुराण, समुदाय स्तोत्रवृत्ति, चतुर्विशति गोम्मटसार पूजा। जिन काव्य (स्वोपज्ञ वृत्ति सहित), कल्याणक उद्यापन, सम्मेदशिखर पूजन, ज्ञानपंचविंशति उद्याकुंवर धर्मार्थो, सम्भवतया उपरोक्त पर्वत पन, शांतिचक्र पूजन और क्षेत्रपाल पूजा की, तथा धर्मार्थी के पुत्र थे-इन्होंने 1749 ई० के लगभग हिन्दी पद्य में ज्येष्ठजिनवर पूजाव्रत कथा एवं बन्धत्रिभंगी (सं. 1806). प्रास्रवत्रिभंगी, उदय- पंचमास चतुर्दशी व्रतोद्यापन की रचना की थी। त्रिभंगी और सत्तात्रिभंगी की हिन्दी गद्य वचनिकाएँ इनके लगभग 100 हिन्दी पदों का भी एक संग्रह लिखी थीं। 2-116 महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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