Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1978
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 247
________________ संघी थारामजी तथा उनके पूर्वजों का वर्णन पाठक इस ही स्मारिका में अन्यत्र पढ़ेंगे। यहां है उनके पश्चात होने वाले उनके वंशजों का वर्णन । पाठक देखोंगे कि विदेशी साम्राज्य के विरुद्ध जो मशाल संधी भू थाराम और उनके सहमियों ने प्रज्वलित की थी उसे उनके वंशधरों ने अन्त तक बुझने न दिया । लेखक ने हमारे विशेष प्राग्रह और अनुरोध पर यह परिचयात्मक और प्रेरणास्पद निबन्ध लिख कर भेजा है एतदर्थ उनका प्रामार। -पोल्याका दीवान झू'थारामजी संघी और उनके वंशज श्री प्रतापचन्द्र जैन 21/63, धूलियागंज, आगरा। जयपुर के शान्तिनाथ दिग. जैन मन्दिर में ईमानदारी की। उपलब्ध करकंडु महाराज का चरित नामक ग्रन्थ की अन्त्य प्रशस्ति में संघी उदा का कुछ विवरण दीवान भूयारामजी बड़े ही रढ़ संकल्पी के और राजदरबार तथा प्रजा जनों में वे बड़े ही मिलता है, जो आज से 350 वर्ष से भी पूर्व आदर पात्र थे। जैन समाज के तो वे एक जयपुर राज्य के महामन्त्री थे। उन्हीं संघी उदा स्तम्भ थे ही उन्होंने कितने ही मन्दिरों का क वशजा म संवत् 1800 + लगभग सभा का जीर्णोद्धार कराया और नसियां तया धर्मशाला रामजी जयपुर राज्य के दीवान हो चुके हैं। वे बनवाई। तब तक मास से व्यासर की खातिर बड़े साहसीलर और सूसास के पनी थे। उक पाये को देश में पैर जमा लिए थे के समय में राज्य के जैनियों का बड़ा दबदबा या मोर के रखवाड़ों में भी हस्तक्षेप करने लगे थे। राज्य की समृद्धि में उनका बहुत बड़ा हाथ जो जयपुर भी उनके जाल से नहीं बच पाया । परन्तु था। जैनी प्रदेशों सम्माननीय पदों पर कार्यरत थे दीवान झूबारामजी को उनका दखल पसन्द नहीं और बड़ी ख्याति थी उनकी निष्ठा और था। वे बड़ी होशियारी से उनके हस्तक्षेप को महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International 2-133 www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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