Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1978
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 265
________________ उद्योतनसूरि के बाद प्राकृत, अपभ्रश एवं दार्शनिक स्तन पर ही हो सका है । सामाजिक स्तर संस्कृत में धर्मपरीक्षा नाम से स्वतन्त्र ग्रन्थ ही लिखे पर तो जैनधर्म अन्य धर्मों की विशेषताओं के साथ जाने लगे। उद्योतन के लगभग दो सौ वर्षो बाद यहुत प्रभावित हो गया था, जिसकी प्रतिक्रिया अपभ्रंश में हरिषेण ने 988 ई० में धम्मपरीक्खा श्रावकाचार ग्रन्थों के रूप में प्रगट हुई है ।25 लिखी। इसके 26 वर्ष बाद ई० सन् 1014 में धार्मिक खण्डन मण्डन की प्रवृत्ति 8वीं-10वो प्रमतिगति ने संस्कृत में धर्मपरीक्षा नामक ग्रन्थ की शताब्दी में इतनी बढ़ी कि अपभ्रंश के मुक्तक कवि रचना की। इन दोनों ग्रन्थों का तुलनात्मक अध्ययन पाखण्डों पर सीधा प्रहार करने लगे। धर्मपरीक्षा विद्वानों ने प्रस्तुत किया है ।22 उससे ज्ञात होता है के इन कवियों ने भी पौराणिक धर्म पर तीव्र प्रहार कि ये दोनों ग्रन्थ प्राकृत में जयराम द्वारा लिखिी किया । धूर्ताख्यान का व्यंग इन रचनाओं में दूसरा धम्मपरीक्खा पर आधारित हैं ।23 यद्यपि उनपर रूप ले लेता है। उसमें कुवलयमालाकहा की वह प्राकृत की उपर्युक्त रचनामों का प्रभाव हो भी भावना नहीं है, जहां राजा सभी प्राचार्यों के मत सकता है । जयराम की धम्मपरिक्खा आज उपलब्ध की समीक्षा कर अन्त में उन्हें सम्मान पूर्वक विदा नहीं हैं । सम्भवतः यह उद्योतनसूरि के बाद और करता है तथा अपने अपने धर्म में संलग्न रहने की हरिषेण के पूर्व किसी समय में लिखी गयी होगी। स्वतन्त्रता देता है ।26 इसके बाद में 17वीं शताब्दी इससे इतना तो स्पष्ट है कि 8 वीं से 11 वीं तक विभिन्न भाषाओं में धर्मपरीक्षा ग्रन्थ लिखे जाते शताब्दी का समय धार्मिक क्षेत्र में खण्डन-मण्डन रहे हैं,27 जो प्रचार-ग्रन्थ अधिक है, काव्य-ग्रन्थ और तर्कणा का था, जिसमें जैनधर्म के मौलिक कम । किन्तु इन ग्रन्थों से सत्य को तुलनात्मक दृष्टि स्वरूप को बचाये रखने का प्रयत्न इन धर्मपरीक्षामों से परखने की पद्धति का विकास अवश्य हुआ है, ने किया है। सोमदेव के यशस्तिलकचम्प में इसका जो वर्तमान अनुसंधान के क्षेत्र में भी अपनाई विस्तृत विवरण प्राप्त होता है ।24 किन्तु यह कार्य जाती है । सन्दर्भ 1. प्रो० एच० डी० बेलणकर, जिनरत्नकोश, भूमिका, पूना 1943 2. उपाध्ये, एनल आफ द भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीटयूट, रजत-जयन्ती अंक भाग 23, 1942 कुवलयमालाकहा, पृ० 204-207 4. प्रेम सुमन जैन, कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन वैशाली 1975 5. मेक्डोलन, वैदिक माइथोलाजी। 6. भदन्त प्रानन्द कोत्सल्यायन, जातक, भाग, 2/251 7. जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत जैनकथा साहित्य, 1971 8. पेन्जर, 'द अोशन आफ स्टोरी'; कथासरित्सागर 9. विमल प्रकाश जैन, जम्बूसामिचरिउ, भूमिका । महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-149 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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