Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1978
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 229
________________ उसको प्राथमिक डेढ़ शती, लगभग 1725--1875 पदमपुराण, हरिवंशपुराण, श्रीपाल चरित्र, मल्लिई०, तो जयपुर के जैन साहित्यिक इतिहास का नाथ चरित्र, पुण्यास्रव कथाकोष (वि.सं 1777), स्वर्णयुग रहा है। इस युग की दिग्गज विद्वत्- परमात्मप्रकाश की हिन्दी गद्य वचनिकाएं; वसुचतुष्टयी-पं. दौलतराम कासलीवाल, प्राचार्यकल्प नंदि उपासकाध्ययन (टब्बा, वि. सं. 1808), पं. टोडरमल, पं. जयचन्द छाबड़ा और पं. सदासुख पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय (वि. सं 1827), और स्वामी दास जी-तो बहुचर्चित रहे हैं और सर्वप्रसिद्ध कीर्तिकेयानुपेक्षा (वि. सं. 1826) की हिन्दी हैं । किन्तु इनके अतिरिक्त जो लगभग पचास अन्य टीकाएँ'; क्रियाकोश (हि. गद्य, वि. सं. 1795); जैन साहित्यकार इस युग में जयपुर या उसके पास अध्यात्म बारह खड़ी (हि. पद्य.)। पास हुए, उनमें से स्यात् एक-डेढ़ दर्जन ही ऐसे हैं जिनकी कुछ चर्चा हुई हो, व.तिपय कृतियों के दीपचन्द शाह कासलीवाल - हिन्दी गद्य में फुटकर उल्लेख हुए हों, अथवा नामादि संक्षिप्त चिद्विलास (वि. सं. 1779), आत्मावलोकन, परपरिचय प्रकाशित हुए हों, शेष बहुभाग को तो मात्मपुराण और अनुभव प्रकाश; तथा हिन्दी पद्य अभी तक साहित्य के इतिहास में स्थान मिला हो, में-ज्ञानदर्पण, स्वरूपानंद, भावदीपिका और उपऐसा नहीं लगता। देशरत्नमाला। अस्तु, जयपुरीय जैन साहित्य के उक्त स्वर्ण खुशालचन्द काला-सांगानेर के निवासी थे, युग से सम्बन्धित ग्रन्थकारों और उनकी कृतियों का, ज्ञात तिथियों आदि सहित संक्षिप्त निर्देश कुछ समय जयपुर में भी रहे प्रतीत होते हैं, किन्तु प्रस्तुत किया जाता है-- इनकी साहित्यिक प्रवृत्तियाँ जयपुर के बाहर अन्य स्थानों में ही रहकर हुई प्रतीत होती हैं। इनकी भ. देवेन्द्र कीति, आमेर जयपुर के भट्टारक सात-आठ बड़ी कृतियाँ हैं जो 1717 और 1749 (1713-41 ई०), समयसार की पदार्थ दीपिका ई० के बीच रची गयीं। टीका (वि. सं. 1788), विद्यानुवाद, दीप्तिसुन्दर संहिता तीनों संस्कृत भाषा में। लिखमीदास पंडित सांगानेरी-ने सं. 1782 में हिन्दी पद्य में यशोधरचरित्र रचा था। नेमचन्द पंडित, भ. देवेन्द्र कीति के गुरुभाई और भ. जगत्कीति के शिष्य हरिवंशपुराण अपरनाम पर्वत धर्मार्थी-ने समाधितन्त्र सूत्र (प्राकृत) नेमीश्वररास, देवेन्द्रकीर्ति की जकड़ी, पखवाड़ा, और द्रव्य संग्रह की हिन्दी टीकाएं 1725 और कई पूजायें-सब हिन्दी में रचित, प्रथम का रचना- 1735 ई० के मध्य किसी समय रची थीं। काल सं. 1769 और द्वितीय का 1770 । किशनचन्द-कल्याणसिंह के पुत्र ने 1727 पन्नालाल संघहि-रत्नकरण्ड श्रावकाचार का ई० में क्रियाकोश भाषा की रचना की। हिन्दी पद्यानुवाद, तथा प्रश्नोत्तर सज्जन चित्तवल्लभ की हिन्दी टीका-प्रथम कृति का रचनाकाल वि.सं. किशनसिंह पंडित देवीचन्द के पुत्र-ने 1716 1770 है। और 1728 ई० के मध्य हिन्दी पद्य में अपन दौलतराम पंडित, कासलीवाल, बसवा निवासी क्रियाकोश, भद्रबाहु चरित्र, रात्रि भोजन कथा (ज्ञात रचनाकाल 1720-70 ई०) प्रादिपुराण, और किशन-पच्चीसी की रचना की थी। महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-115 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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