________________
अपने उद्देश्य सिद्धि के लिये जिस कार्य प्रणाली का अवलम्बन किया जाता है उसे नीति कहते हैं । जिस कार्य-पद्धति का अवलंबन कर शासन सुद्दढ़ और स्थायी बने और संविधान में बताए उद्देश्यों की पूर्ति कर सके वह राजनीति के नाम से अभिहित की जाती है । प्राचीन काल में राजतन्त्र था अतः इनमें राजाओं के जानने योग्य बातों का समावेश मुख्य रूप से उस काल के लेखकों ने किया जैसे चाणक्य, विदुर, व्यास, भागुरी, सोमदेव आदि । जैन पुराणकारों ने भी प्रसंगानुसार राजनीति का वर्णन किया है। विद्वान लेखक ने प्राचार्य गुणभद्र के उत्तरपुराण में प्रतिपादित राजनीति का दिग्दर्शन अपने इस निबन्ध में कराया है। धर्मनीति श्रौर राजनीति के इस मुख्य भेद को पाठकों को ध्यान में रखना चाहिये कि धर्मनीति में मन, वचन और काय की प्रवृत्ति में कोई भेद नहीं होता किन्तु राजनीति में मनसि अन्यत्, वचसि अन्यत् कार्ये अन्यत् क्षम्य है । आवश्यक नहीं कि राजनीतिज्ञ का मुखौटा वही हो जो उसके मन में हो। शासन की सफलता के लिए श्राज भी इन सिद्धान्तों का महत्व कम नहीं हुआ है ।
- पोल्याका
उत्तरपुराण में प्रतिबिम्बित राजनीति
डॉ० रमेशचन्द जैन वर्धमान डिग्री कॉलेज, बिजनौर |
राज्य - राज्यों में राज्य वही जो प्रजा को सुख देने वाला हो । उत्तरपुराण में देश के जो विशेषण दिए गए हैं उनमें दुर्ग, वन, खानें, प्रकृष्टपच्य सस्य " ( बिना बोए होने वाले धान्य ) त्रिव (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ) में विभक्त प्रजायें, तपस्वियों पर प्रतिक्रमण करने वाले कृषक, सुस्वच्छ जलाशय, 5 अनाज से परिपूर्ण, सबको तृप्त करने वाले राजा के भण्डार के समान खेत तथा धन धान्यादि से परिपूर्ण पास पास में बसे हुए ग्राम' प्रमुख हैं ।
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
Jain Education International
राजा का महत्व - स्वामिसम्पत् ( राजसंम्पत्ति) से युक्त राजा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णों का आश्रय है । उसके सत्य से मेघ किसानों की इच्छानुसार बरसते हैं और वर्ष के श्रादि, मध्य तथा अन्त में बोए जाने वाले सभी धान्य फल
।
प्रदान करते हैं राजा के पृथ्वी का पालन करते समय जब सुराज्य होता है तो प्रजा उसे ब्रह्मा मानकर वृद्धि को प्राप्त होती है 10 । जिस प्रकार कोई गोपाल अपनी गाय का अच्छा भरण पोषण कर उसकी रक्षा करता और गाय प्रसन्नता से उसे
For Private & Personal Use Only
2-31
www.jainelibrary.org