Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1978
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 196
________________ प्रेम सिद्धान्त की दृष्टि से भी यही सरणी इस प्रकार समझना चाहिए कि प्रेमपरक या शृंगारपरक नाटकों में ऐसे दो पात्रों को जिन्हें श्रागे चलकर प्रेमी युगल बनाना अभिप्रेत होता है प्रथम दर्शन में प्रकृष्ट दिखाया जाता है। इस प्रकार अनुरागोदय का फल प्राधुनिक युग में मंगलमय और अमंगलमय दोनों तरह का माना जाता है किन्तु प्रादर्शवादी विचारधारा यह है किशुद्ध चरित्र वाला प्रेम जिसमें वासना की प्रबलता न समाई हो और पूर्व संस्कारों की आध्यात्मिक प्रेरणा हो तो प्रथम दर्शन का प्रेम क्रमशः विकसित होकर बाधाओं पर विजय पाकर अन्त में मंगलमय ही होगा । हस्तिमल्ल के चारों नाटकों में हम प्रेम के इसी उदय, विकास और मंगल को देखते हैं । मैथिली कल्याण में सीता और राम का अनुराग दोलागृह की भेंट में, विक्रान्त कौरव में सुलोचना और जयकुमार का प्रथम अनुराग नगर देवता यात्रा या गंगातीरोद्यान में, सुभद्रा नाटिका के भरत और सुभद्रा का अनुराग वेदीवन के परस्पर दर्शन के बाद तथा अंजना पवनंजय नाटक के नायक-नायिका का अनुरागोदय विवाह के पूर्व मन्दार वन में परस्पर दर्शन से हुवा था । राम के मिलन में धनुभंग की घटना निर्वाह, अंजना से मिलन में पवनंजय का रावण की सहायतार्थ युद्ध में व्यस्त रहना, युद्ध समाप्त हो जाने तक अंजना का निर्वासन, विक्रान्त कौरव में सुलोचना के इच्छुक राजानों द्वारा उपस्थित किये गये संग्राम और सुभद्रा नाटिका में देवी वैलाती की अनुकूलता का प्रभाव ये नायिका नायक के मिलन की बाधायें थीं । उन नाटकों के नायक अपने कार्यों द्वारा या सहायकों द्वारा बाधाओं पर विजय पाकर अभीष्ट लाभ करते हैं । इस प्रकार सूक्ष्म रीति से चारों नाटकों को एक मार्ग का अनुसरण करता हुआ पाते हैं । 2-82 Jain Education International मैथिली कल्याण नाटक के नायक राम, विक्रान्त कौरव के कौरवेश्वर जयकुमार, सुभद्रा के नायक भरत और अजना पवनंजय में विम्ब प्रति बिम्ब भाव एकसा पाते हैं । सी प्रकार उनकी नायिका सीता, सुलोचना, सुभद्रा और प्रजना भी चारित्रिक साम्य है। सीता की सखी विनीता, सुलोचना, की सखी नवमालिका, सुभद्रा की सखी मंदारिका और प्रजना की सखी बसन्तमाला के कार्यों की तुलना भली प्रकार हो सकती है । मैथिली कल्याण का विदूषक गागरण, विक्रान्त कौरव का विदूषक सौधातकि, सुभद्रा का विदूषक कार्त्यायन और अंजना पवनंजय के विदूषक प्रह सित में भी साम्य देख सकते हैं । सुभद्रा और मैथिली कल्याण के विदूषकों की कथन प्रणाली भी समान प्रतीत होती हैं । " त्रियोग वर्णन के लिए प्रकृति के वर्णन में श्रीजना पवनंजय ( पृष्ठ 41 ), विक्रान्त कौरव (पंचम क) मैथिली कल्याण (चतुर्थ प्र क ) में इस प्रकार सभी में चन्द्रोदय का वर्णन होने पर भी नवीन कल्पनाओं और नवीन शैली में है । अंजना पवनंजय नाटक में प्रथम भ्रंक में मधुकारिका श्रौर बसन्तमाला भविष्य में होने वाले स्वयंवर का अभिनय करती हैं इस प्रकार इसमें अभिनय के भीतर भी एक अभिनय है । इसी प्रकार मैथिली कल्याण नाटक में सीता विनीता राम और विदूषक की भूतकाल की एक घटना का अभिनय करती है । सुभद्रा नाटिका में बालाशोक को मालतीलता प्रदान करने की घटना को भरत को सुभद्रा का दान का अभिनय समझना चाहिए | विक्रान्त कौरव श्रोर मैथिली कल्याण दोनों नाटकों के भरत वाक्य रत्नत्रय (सम्यदर्शन, सम्यज्ञान और सम्यक् चारित्र) धारण करने की प्रेरणा For Private & Personal Use Only महावीय जयन्ती स्मारिका 78 www.jainelibrary.org

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