Book Title: Mahavir Vardhaman Author(s): Jagdishchandra Jain Publisher: Vishvavani Karyalay View full book textPage 6
________________ ग्रन्थ के बारे में जिन कुछ पुस्तकों की हिन्दी को बहुत आवश्यकता रही है उन में एक है महावीर वर्धमान । डॉ० जगदीशचन्द्र जी की इस कृति को पढ़कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। बौद्ध-ग्रन्थों में भगवान् बुद्ध के जीवन-चरित्र के बारे में सामग्री की कमी नहीं, लेकिन वही बात जैन-ग्रन्थों और महावीर वर्धमान के बारे में नहीं कही जा सकती। डॉ० जगदीशचन्द्र जी ने अपने इस ग्रन्थ की सामग्री के लिये बौद्ध त्रिपिटक और जैन-सूत्रों को समान-रूप से दुहा है; और उन में से जो भी सामग्री मिली है, उसी के आधार पर इस ग्रन्थ की रचना की है। मुझे यह स्वीकार करते हर्ष होता है कि लेखक ने इस ग्रन्थ को शास्त्रीय दृष्टि से अधिक-अधिक प्रामाणिक बनाने की चेष्टा की है और वे उस में सफल हुए है। किन्तु, इस ग्रन्थ की विशेषता तो यह है कि इस में महावीर वर्धमान के जीवन और उन की शिक्षाओं को एक नई दृष्टि से देखने का प्रयत्न किया गया है। दृष्टि इतनी आधुनिक है कि जो लोग महावीर वर्धमान के जीवन को परम्परागत दृष्टि से देखने के अभ्यासी हैं, उन्हें वह खटकेगी ही नहीं चुभंगी भी। तो भी मैं आशा करता हूँ कि आज का हिन्दी का पाठक इस पुस्तक को चाव से पढ़ेगा और महावीर वर्धमान की जिन शिक्षाओं को डॉ० साहब ने ऐसे समयोपयोगी तथा समाजोपयोगी ढंग से पेश किया है, उन्हें हृदयङ्गम करने का प्रयत्न करेगा। पुस्तक लोक-कल्याण की भावना से ओत-प्रोत है अतः मैं इस का प्रचार चाहता हूँ। लोकमान्य मन्दिर पुणे आनन्द कौसल्यायन ता० १०-११-४५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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