Book Title: Mahasati Dwaya Smruti Granth
Author(s): Chandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
Publisher: Smruti Prakashan Samiti Madras

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ समर्पण जब तक है यह दृश्य सृष्टि का नियति नियंत्रित भू आकाश। कण-कण यो बना रहेगा स्मृतियों का दिव्य प्रकाशा जब तक नभ में चन्द्र दिवाकर जब तक अमर रहे यह नामश्री कान - चम्पा के चरणों में करती हूँ शत्-शत् बार प्रणाम्॥ (२) करुणा की मूर्ति ओ गुरुवर्या लोकोत्तर प्रतिभा साकार। मन उपवन से चुनकर लायी भावांजली पूरित उपहार॥ शतदल कमल सदश सुष्मा का स्वप्न संजोकर मैं इस बारश्रद्धा सुमन समर्पित करती कृपया इसे को स्वीकार॥ महाश्रमणी रत्न, सरलमना, अध्यात्म्योगिनी सदददगुरुवर्या, शासन प्रभाविका स्व. पू. महासती जी श्री कनकुवंर जी म. सा. एवं परम् विदुषी, प्रखर व्याख्यात्री, आरमरसिका, सागरवर गंभीर, क्षमा और शांति के प्रतीक, मेरे आस्था के आयाम, जीवन निर्मात्री मातृस्वरूप शास्तचन्द्रिका स्व. पू. सद्गुरुवर्य श्री चम्पाकुवंर जी म. सा. के पावन चरणों में सादर, सश्रद्धा सविनय सभक्ति समर्पित * आर्य चन्द्रप्रभा 'मुस्कानी' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 584