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89.6.10]
महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु
जणमणगयसंसयाणं कयंतो महंतो अणंतो कणताण ताणेण होणाण दुक्खेण रीणाण बंधू जिणो कम्मवाहीण वेज्जो । 12 । घत्ता - सुरवरवंदिओ महसु महाहियं ।
सिवएवीओ देवो" माहियं ॥5॥
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दुवइ - णिम्मलणाणवंत' सम्मत्तवियक्खण चरियमणहरा" । वरदत्ताइ तासु एयारह जाया पवर गणहरा ॥ छ ॥ जहिं पुव्यवियहं चउसयाई । एयारहसहस सिक्खुयाहं । अप्पत्थि परत्थि सया हियाई । केवलिहिं मि जाणियसंवराहं । एवारह सय सविउव्वणाहं । एक्कें सएण ऊणउं सहासु । वसुसमई सघाई विवाइयाहं । जहिं एक्कु लक्खु मंदिरजईहिं ।
साहुहुं सव्वह' संपयरवाई पासुयभिक्खासणभिक्खुयाहं परिगणिय अट्टसयाहियाई पणारह सय अवहीहराह संसोहियवम्महसरवणाहं मणपज्जयणाणिहिं जहिं पयास परवयणविणासविराइयाहं चालीस सहासई संजईहिं
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जनमनों में रहनेवाले, संशयों के निवारक (निकाल देनेवाले), महानू, अनन्त और कृतान्त, उनसे हीन और दुःखों से क्षीण, लोगों के लिए बन्धु और कर्मरूपी व्याधि के लिए जिनदेव वैद्य हैं ।
धत्ता - जो सुरवरों के द्वारा वन्दित, शिवदेवी के सुत और देव हैं, महाहितकारी उन्हें ज्ञान लक्ष्मी के लिए तुम पूजो ।
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निर्मल ज्ञानवाले सम्यक्त्व से विलक्षण और चारित्र में जो सुन्दर हैं, ऐसे वरदत्त आदि उनके ग्यारह गणधर उत्पन्न हुए । उनके समवसरण में समस्त साधुओं में पूर्णरूप से पण्डित तथा रत्नत्रय सम्पन्न चार सौ साधु थे । प्रासुक भिक्षा का भोजन करनेवाले, आत्महित और परहित में सदा तत्पर रहनेवाले ग्यारह हजार आठ सौ शिक्षक थे। अवधीश्वर मुनि पन्द्रह सौ थे। संबर के जाननेवाले और कामदेव के बाणों का संशोधन करनेवाले केवलज्ञानी भी पन्द्रह सौ थे। विक्रिया ऋद्धि के धारक ग्यारह सौ तथा मन:पर्यय ज्ञान के धारक नौ सौ
( सौ कम एक हजार ) थे। दूसरों के वचनों के खण्डन से शोभित बादी मुनि आठ सौ चालीस हजार आर्यिकाएँ थीं। वहाँ पर मन्दिर जानेवाले श्रावक एक लाख थे। जिनमें व्रत पालन का प्रेम वृद्धिंगत है, ऐसी तीन लाख
21. BP देख ४५ AP लमाहियं ।
( 6 ) 1. B णाणवत्स 2. B Als. चरिचधगहरा S चरियधण मणहरां 3. R वरयताई 4. A सव्वहं संजयरयाई । सुव्वयसंजयरयाइ । 5. S सहई । B अवहीसरा R ABKS सहस विउब्वणाई B has ह for य in second hand
6. Pommits this fnot. 7.