Book Title: Mahapurana Part 5
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 354
________________ । 3521 महाकइपुष्फवंतविस्यउ महापुराणु [99.3.9 10 पियसोएं' णियजीविउ मर्यति आसासिय सड़ जम्खिड् यति ! तहिं आणिउ दइवें पायडेण मुउ पुत्तु चित्तु गंधुक्कडेण। देविइ बोल्लिउं लइ एहु बालु होसइ परमेसरु पुहइपालु । ता गहिउ तेण णियपियहि दिण्णु पणिणाहें कहिं मि ण मंतु भिण्णु। गारुडजंतें सहुं धीमहंत दंडववणि णिहिय गरिंदकंत। घत्ता-सच्चंधरदेवहु' रहस्यभावहु महुरु णाम सुउ जायउ। अइकोमलवायहि मयणपडायहि अवरु बउलु विक्खायउ।।3।। 15 Or णामेण विजउ सेणाहिणाहु सायरु वि 'पुरोहिउ दीहबाहु। धणपालु सेट्ठि मइसायरक्खु णिवति' मंतविण्णाणचक्खु । पढमहु तणुरुहु हुउ देवसेणु बीयहु संजायउ 'बुद्धिसेणु। तइयहु वरयत्तु' महुमुहक्खु उप्पण्णु चउत्थहु कमलचक्खु । सहं रायसुएण मणोहरेण एए परिपालिय वणिवरेण। जीवंधरु कोक्किर रायउत्तु गंभीरघोसु गंभीरसुत्तु। वणि दिवउ मायातावसेण भोयणु मग्गिउ भुक्खावसेण। आणिउ तावसु भवणहु समीवि भुंजाविउ घरि कयरयणदीवि । पुणु घोसइ सो सिववेसधारि हे वणिवइ तुह सुउ चित्तहारि। उसे स्वयं यक्षिणी ने समझाया। वहाँ पर मूर्तरूप पुण्य गन्धोत्कट ने अपना मरा हुआ पुत्र लाकर फेंका। तब देवी ने कहा-"यह बालक लो, वह पृथ्वीपाल परमेश्वर होगा।" उसने उसे ग्रहण कर लिया और ले जाकर अपनी पत्नी को दिया। सेठ ने इस रहस्य को कहीं भी प्रकट नहीं किया। गारुडयन्त्र के साथ बुद्धि से महान् उस नरेन्द्रकान्ता (रानी) को उसने दण्डकवन में रख दिया। ___घत्ता-इधर राजा सत्यन्धरदेव की पत्नी भामारति ने मधुर नाम के पुत्र को जन्म दिया और दूसरी अत्यन्त कोमल वाणीवाली मदनपताका के विख्यात बकुल नाम का पुत्र हुआ। विजयमति नाम का सेनापति, दीर्घबाहुवाला सागर नाम का पुरोहित, धनपाल सेठ, मतिसागर नाम का मन्त्रविज्ञानरूपी आँख से युक्त राजमन्त्री था। पहले का पुत्र देवसेन, दूसरे का पुत्र हुआ बुद्धिसेन, तीसरे का वरदत्त, और चौथे का कमलनयन मधुमुख नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। उस सेठ (गन्धोत्कट) ने इस मनोहर राजपुत्र के साथ ही इनका पालन किया। राजपुत्र को जीवन्धर कहा गया। वह गम्भीर घोष और गम्भीर उक्तिवाला था। वन में एक मायावी तपस्वी ने कुमार को देखा और भूख के कारण उससे भोजन माँगा। वह तपस्वी को अपने घर ले आया, और रत्नद्वीपों से आलोकित घर में उसे भोजन कराया। शिव के रूप को धारण करनेवाले उस तपस्वी ने कहा कि "हे सेठ ! तुम्हारा पुत्र चित्त का हरण करनेवाला है। अत्यन्त 7. A पिउसोएं। 8. Fता दंडयवणि। ५. 4 देविहे। 10. A रइरसमाविह: । रइरसभावहो। (4) 1. AP परोहिउ। 2. A नृव । 9. AP बुद्धसेणु। 5. AP वरइत्तउ । 5. AP गंमीरसत्तु । 6. A आणि उ भवणहु ताय समीवे17. P कयरमण" ।

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