Book Title: Mahapurana Part 5
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 369
________________ - 99.16.191 महाकइपुष्यंतविरयन महापुराणु [ 367 - ------ - ____10 उबसंतसव्वणीसल्तु कयउं भवसंचिउं दूरहु वइरु गयउं। गुंजाहलभूसियकसणकाय' णिम्मुक्क बे वि राएं चिलाय। सोहाउरि बहुलायण्णपुण्ण णंदवहु सा सिरिचंद दिण्ण। दिग्णउं पयाणु पुणु हिमसमीरि घिउ सेण्णु अवरसरवरहु तीरि। परिवारु सब्बु चउदिसिहि रुद्ध तहिं तिव्वगंधमक्खियहिं खड़। झाइउ वणसुरवरु सुंदरेण सो आयउ तें पसरियकरण। कय रणविहि पडु परिरक्खणेण विज्जाहरु धरियउ तक्खणेण । आणि पुच्छिउ सएं खगिदु किं पई सरु रक्खिउ सारविंदु। भिंगारकराह मनु - रेसि पहु किंकराह। किं दंसमसय रइयप्पमेय ता भणइ खयरु सुणि सुहविवेय। रायउरि सुहासियघरपवित्ति विक्खायइ मालायारगोति। जाईभडकुसुमसिरीहिं' पुत्तु तुहं होतउ णामें पुष्पदंतु। तेत्धु जि पुरि गुणसंजणियराउ धणयत्तणंदिणीदेहजाउ। 15 चंदाहु णाम ह' मझु मित्तु अवरेक्कु कहिउ तें धम्मचित्तु । दोह' मि अम्हहं दोहि मि जणेहिं गहियई वयाई णिच्चलमणेहिं। .. पत्ता-सो चंदाहु मरेप्पिणु सग्गि वसेप्पिणु मुणिवरेहिं विण्णायउ। एत्यु विदेहधरायलि वरखवरायलि विज्जहरु हउँ जायउ ॥16॥ बैर चला गया। मुंजाफलों से भूषित काले शरीरवाले उन दोनों भीलों (पिता-पुत्र) को मुक्त कर दिया गया। इधर शोभापुरी में प्रचुर लावण्य से परिपूर्ण श्रीचन्द्रा नन्दाढ्य के लिए दे दी गयी। फिर उन्होंने प्रस्थान किया और सेना एक दूसरे सरोवर के हिम के समान शीतल किनारे पर ठहरी । वहाँ चारों ओर से परिवार को धेर लिया गया और तीव्रगन्धवाली मक्खियों ने उसे नष्ट करना शुरू कर दिया। सुन्दर जीवन्धर ने यक्ष का ध्यान किया। वह आया। अपने हाथ फैलाकर रक्षा करनेवाले उसने शीघ्र युद्ध किया और तत्काल उस विद्याधर को पकड़ लिया। पास में लाये जाने पर राजा ने उस विद्याधर राजा से पूछा--"लक्ष्मीपद से युक्त इस सरोवर की तुम रक्षा क्यों कर रहे हो ? भिंगारक और घड़ों को हाथों में थामे हुए हमारे अनुचरों को तुम पानी क्यों नहीं देते ? तुमने अनगिनत डाँस-मच्छरों की रचना क्यों की ?" तब वह विद्याधर कहता है-"हे शुभ विवेकशाली ! सुनो, चूने से सफेद गृहवाले राजपुर के विख्यात मालाकार गोत्र में तू जातिभट और कुसुमश्री का पुष्पदन्त नाम का पुत्र हुआ था। उसी नगरी में धनदत्त और नन्दिनी से उत्पन्न तथा अपने गुणों से स्नेह पैदा करनेवाला चन्द्राम नाम का मैं पुत्र था। एक और मित्र था, उसने विचित्रधर्म का कथन हम दोनों के लिये किया था। हम दोनों ने निश्चलमन होकर श्रावकव्रत ग्रहण कर लिये। __ पत्ता-वह चन्द्राभ मरकर स्वर्ग में निवास कर, मुनिवरों के द्वारा ज्ञात मैं इस विदेह क्षेत्र के विद्याधर लोक में विद्याधर उत्पन्न हुआ हूँ। (16) 1. A गुंजाइलभूसणकसणकाय; P गुंजाहलभूसणकाय) 2. AP चदिसि णिरुद्ध। . A स्य अप्पमेय; P रश्यप्पमेय। 4. A जोउ मडु कुसुम । 5. A हुउ। 6. AP धम्मयितु। 7. P तातहिं अहं । 8.AP खयरघरायलि।

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