Book Title: Mahapurana Part 5
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 397
________________ ' 101.10.2 ] महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु कण्णा पबोल्लिउं सुणि कुमार खगरायहु अलयाईसरासु हरिबल महसेणु वि मुक्कसंकु तहु पणइणीहि आबद्धपणउ तहु सिरिमइसइहिं हिरण्णवम्मु दुत्थियसज्ज कइकामधे वरसेणु अवरु हउं सुय ण भति वितरदेवय णिज्जिणिवि पवरु महु* भायहु दिण्णी भीमकाय अलमाउरिराएं हरिबलेण विलमइणामचारणहु पासि लीलावलोय पच्चक्खमार। णियतेययपरज्जियणेसरासु । भूतिलउ पुत्तु णियकुलससंकु । धारणियहि जायउ भीमु तणउ । सुउ संभूयउ सोहग्गरम्भु । सुंदरिमहसेणह उग्गसेणु । णामेण वसुंधरि पर कहति । महु ताएं णिम्मिउं पउरु गरु । विज्जा खेयरसंदिण्णराय । तवचरणु लइजं मणि णिम्मलेन । गउ मोक्खहु थिउ भुवणग्गवासि । I पत्ता- भीम वि रज्जु करंतु विज्जाकारणि' कुद्धर । रणि हिरण्णवम्मस्स लग्गउ सिहि व समिद्धउ ||१|| ( 10 ) णासिवि हिरण्णवम्मउ' असंकु यिनयरि परिट्टि भीमराउ संमेयमहीहरि मज्झि धक्कु । वरि वि सपिउव्वहु पासि आउ । [ 395 5 10 4. 1. K सहसेणडु। 5. AP एवं 6 A यहु सायहो । लहुभावहो। 7. P बिज्जाकरर्णे । ( 10 ) 1. AP हिरण्णत्रम्मुवि असक्कु । 15 से बन - हिरनी को पराजित करनेवाली हे भयशीले ! तुम कहो, कहो, डरो मत।" कन्या बोली- हे लीलापूर्वक देखनेवाले प्रत्यक्ष कामकुमार ! सुनो। अपने तेज से सूर्य को पराजित करनेवाले अलकापुरी के स्वामी विद्याधर राजा के हरिबल और महासेन शंकाओं से मुक्त एवं अपने कुल का चन्द्रमा भूतिलक पुत्र थे । हरिबल की प्रणयिनी धारिणी से प्रणतों ( नतमस्तकों) को आबद्ध करनेवाला भीम नाम का पुत्र हुआ । उसकी दूसरी रानी श्रीमती सती से सौभाग्य रमणीय हिरण्यवर्मा नाम का पुत्र हुआ। वह विस्थापितों के लिए सज्जन और कवियों के लिए कामधेनु था। महासेन और सुन्दरी से उग्रसेन, वरसेन पुत्र और मैं पुत्री उत्पन्न हुए, इसमें भ्रान्ति नहीं है। नाम से लोग मुझे वसुन्धरा कहते हैं । प्रवर व्यन्तरदेव को जीतकर मेरे पिता ने इस विशाल नगर की रचना की थी। छोटे भाई के लिए भीमकाय विद्याधर संदिन्नराग की विद्या देकर मन से निर्मल, अलकापुरी के राजा, हरिबल ने विमलमति नामक चारणमुनि के पास तपश्चरण ग्रहण कर लिया। वह मोक्ष गये और लोक के अग्रभाग में स्थित हो गये । छत्ता -- भीम भी राज्य करता हुआ विद्या के कारण क्रुद्ध हो गया। आग की तरह जलता हुआ वह हिरण्यवर्मा युद्ध में भिड़ गया। से (10) अशंक हिरण्यवर्मा को नष्ट कर वह सम्मेदशिखर पर्वत पर जाकर रुका। भीम राजा अपनी नगरी में

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