Book Title: Mahapurana Part 5
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 373
________________ 99.19.201 महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराण [371 5 10 तं णिसुणिवि रोसहुयासु जलिउ परिवाययवेसें कुंबरु चलिउ। पच्छइ णहयलपरिघुलियकेउ णंदटु णिहिउ साहणसमेउ। णियवहरिभवणि दियवेसधारि अवयरिवि पर्यपइ चित्तहारि। भोयणु भुजवि अग्गासणत्यु पुणु वक्खाणि वसियरणसत्थु । गुणमालहि 'बालहि गेहु ढुक्कु हिवउल्लउं तहि बसि करिवि मुक्कु। जाणिउ जीवंधरु दिण्ण सासु गुणमालिणि णं रइ वम्महासु। वणिवेसें रइरसरमणधुत्ति पुणु परिणिय सायरदत्तपुत्ति। तं कण्णाजुवलु करेण धरिवि विजयइरिकरिंदारुहण करिवि । पइसइ पहु गंधुक्कडणिवासि कुद्धउ परवई पडिवक्खतोसि । जणवइ विदेहि पुरवरि विदेहि गोविंदु राउ पडिवण्णदेहि।। पुहईसुंदरि पिय बीय सीय तहि रयणवइ त्ति सुरूव धीय। सा चंदयवेहि सयंवरेण परिणिय णियपुरि जीबंधरेण। आढत्ती हरहुं णरेसरेहि खलकढुंगारयकिंकरेहि। भड भिडिन हरवि जायउ रणु भीसणु गलियसहिरु । घत्ता-तहिं तेण कुमारें विक्कमसारें करिवरु ।"पाएं पेल्लिङ। सो कलुगारउ भडु भल्लारउ चक्के छिदिवि घल्लिङ ॥19॥ 15 20 पराभव को दूर करो।" यह सुनकर कुमार की क्रोधाग्नि भड़क उठी। कुमार परिव्राजक का रूप बनाकर चला। जिसकी पताकाएँ आकाश में व्याप्त हैं, ऐसे नन्दाढ्य को सेना के साथ पीछे रख लिया। सुन्दर ब्राह्मण वेशधारी वह शत्रु के घर में प्रवेश करके बोला तथा सबसे आगे बैठकर उसके साथ भोजन किया और वशीकरण शास्त्र का व्याख्यान किया। फिर गुणमाला के घर पहुंचा और उसके हृदय को वश में करके छोड़ दिया। जब यह पता चला कि वह जीवन्धर कुमार है तो उसे गुणमाला दी गयी, मानो कामदेव को रति दे दी गयी हो। वणिक् के रूप में उसने रतिरस के रमण में कुशल सागरदत्त की पुत्री विमला से विवाह कर लिया। उन दोनों कन्याओं का हाथ पकड़कर, विजयगिरि महागज पर बैठकर वह गन्धोत्कट के निवास पर पहुंचा। शत्रु के हर्ष (प्रगति) से राजा क्रुद्ध हो उठा। विदेह जनपद में विदेह नगर है। उसमें प्रजा के द्वारा मान्य गोपेन्द्र नाम का राजा था। उसकी पृथ्वीसुन्दरी नाम की पत्नी थी। उसकी रत्नावली नाम की स्वरूपवती कन्या थी, जो मानो दूसरी सीता थी। जीवन्धर चन्द्रकवेध के द्वारा उसका वरण कर उसे अपने नगर ले आये। दुष्ट काष्ठांगार के अनुचर राजाओं ने उसके अपहरण का प्रयास किया। योद्धा भिड़ गये। जो दिये गये दृढ़ प्रहारों से विधुर है तथा जिसमें रक्त की धारा बह रही है, ऐसा भीषण युद्ध हुआ। घत्ता-तब उस युद्ध में विक्रमश्रेष्ठ कुमार जीवन्धर ने अपने हाथी को पैरों से चलाया और उस काष्ठांगार शत्रु को चक्र से काटकर फेंक दिया। 2. AP कमरू। 3. A बालहे ससुह। 4. P पुण पालिणि। 5. AP रमणपुत्ति। 5. AP पडिवक्त तासि। 7. AP डिवणणेहेि। 8. A सुरून सोय। ५. P चिहरु; 10. AP पायहि।

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