Book Title: Mahapurana Part 5
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 380
________________ 3781 महाकइपुप्फयंतविरपउ महापुराणु [100.4.1 5 माणवेण णउ केण वि दिवउ अरुहदासवणिभवणि पइट। दिट्टी तेण तेत्थु पसरियजस जिणवरदासि पणिहालस। पुच्छिय कुसुमालें किं चेयसि- भणु भणु माइरि' किं णउ सोवसि। ताइ पबोल्लिउ महुं सुय सुहमणु परइ बप्प पइसरइ तवोवणु। पुत्तविओयदुक्खु तणु तावइ तेण णिद्द महुं किं पि वि णावई। बुद्धिमंतु तुई बुहविण्णायहिं एहु णिवारहि सुहडोवायहिं। पई हउं बंधवु परमु वियप्पमिजं मग्गहि तं दविणु समप्पमि। तं णिसुनियि णिरुक्कु गउ तेत्ताहे अच्छइ सहुं बाहें वरु जेत्तहि । जंपइ भो कुमार णउ जुज्जइ जणु परलोयगहेण जि खिज्जइ। णियडु ण माणइ दूरु जि पेच्छइ पल्ल' तणु मुएवि महुं बंछइ। णिवडिउ कक्करि सेलि सिलायलि जिह सो तिह तुहं मरहि मणिप्फलि। तवि किं लग्गहि माणहि कपणउ ता पभणइ वरु 'तुहं वि जि सुण्णउ। जीवहु तित्ति भोए पउ विज्जइ इंदियसोक्खें तिठ्ठ ण छिज्जइ। धत्ता-ता घोरें चोरें बोल्लियां सवरें विद्धउ कुंजरु। सो भिल्लु ससल्लु दुमासिएण फणिणा दहउ दुद्धरु ॥4॥ 10 15 उसे कोई मनुष्य नहीं देख सका। वह अहहास के भवन में घुस गया। वहाँ उस चोर ने प्रसरित यशवाली, नष्ट है नींद और आलस्य जिसका ऐसी अर्हद्दास की पत्नी से पूछा-- "हे माँ ! तुम क्यों जाग रही हो ? हे माँ ! बताओ, बताओ, तुम क्यों जाग रही हो ?' उसने उत्तर दिया, "मेरा शुभमन के समान पुत्र कल तपोवन में प्रवेश करेगा। पुत्र के वियोग के दुःख से मेरा शरीर जल रहा है। इसी कारण मुझे जरा भी नींद नहीं आ रही है। तुम बुद्धिमान हो, तरह-तरह के विज्ञानों और सुभट वचनों से इसको रोको। मैं तुम्हें अपना भाई मानूंगी और जितना धन माँगोगे, उतना धन दूंगी।" यह सुनकर वह चोर वहाँ गया जहाँ वधुओं के साथ वह बैठा हुआ था। वह कहता है-“हे कुमार ! यह ठीक नहीं है। लोग परलोकरूपी ग्रह से ही नष्ट होते हैं। अपने निकट की चीज को नहीं मानते, दूर की चीज देखते हैं। पत्ते और तिनकों को छोड़कर, मध चाहते हैं। इस तरह जिस प्रकार कठोर पहाडी चट्टान पर गिरकर ऊँट मर जाता है, उसी भी निष्फल मर जाओगे। इसलिए तम तप में क्यों लगते हो ? इन कन्याओं को मानो (यह आनन्द लो।" इस पर वर उत्तर देता है-"तुम भी कोरे हो। जीवों की तृप्ति भोग से नहीं होती। इन्द्रियसुख से तृष्णा शान्त नहीं होती।" घत्ता-तब उस भयंकर चोर ने उत्तर दिया कि भील से हाथी घायल हुआ तथा पेड़ पर बैठे हुए नाग के द्वारा दुर्धर भील इस लिया गया। (4) 1. P तेत्थु तेण। 2. A वैयहि। . AP मायरि। 4. A सोबहि। 3. Aण आवइ । 6. AP णिरिक्छ । 7. A एलउ तरु सुएयि; Pएलउ तण मएवि। . A सेलसिलावले । 9. AP बरहतु जि सुण्णर। 15. गा विउ गर्थितः। 15. "भक्ख सभास्करपतापः ।

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