Book Title: Mahapurana Part 5
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 386
________________ 10 384 1 महाकइपुप्फयंतविरयत महापुराणु [100.9.10 वणिणा दिष्णु दाणु संमत्तिई जायइ पंचच्छेरयवित्तिइ। रयणचुट्टि" णिरु' हुई तह घरि मुणिवरु उववणि थक्कु मणोहरि। घत्ता-इहु गच्छइ पेच्छइ तासु पय फुल्लहत्थु णायरजणु। तं णिसुणिवि पिसुणइ पुणु वि सिसु उवसममेण णिम्मलमणु ॥७॥ (10) किह संजुत्तउ इच्छियसिद्धिहिं सायरदत्तु भडारउ रिद्धिहिं। तं आयपिणवि घोसइ मइवरु पुक्खलवइ णामें देसंतरु। तेत्थु 'पुंडरिंगिणि णामें पुरि वज्जदंतु चक्केसरु णरहरि। देवि जसोहर गभभरालस गय णियमणमग्गियकीलारस । सीयाणइसायरवरसंगमि कर जलकेलि ताइ दुहणिग्गमि। सहुँ सहीहिं पडिआगय गेहहु णवमासहिं णीसरियउ देहहु। चरमदेहु दइवें अवयारिउ सायरदत्तु पुत्तु हक्कारिउ। णवजोव्वणि णाडउं अवलोइड 'तेण तासु भिच्चे मुहं जोइउं। पेच्छु कुमार मेहु णं सुरागार धवलत्ते णिज्जियससहरसिरि। तं णिसुणिवि सो उग्गीवाणणु जोयइ जाम पुरिसपंचाणणु। 10 ताम मेहु सहस त्ति पणट्ठउ भणइ तरुणु हउं मोहें मुट्ठउ। नगर में प्रविष्ट हुए। सेट ने भक्तिपूर्वक उन्हें दान दिया, जिससे पाँच आश्चर्य वृत्तियाँ उत्पन्न हुईं। उसके घर में निरन्तर रत्नों की वर्षा हुई। मुनिवर मनोहर उद्यान में विराजमान हैं। ___ छत्ता-यह नागरसमूह जाता है और हाथ में फूल लेकर उनके चरणों के दर्शन करता है। यह सुनकर उपशम भाव को प्राप्त बालक पूछता है । 10) आदरणीय सागरदत्त इच्छित सिद्धियोंवाली ऋद्धियों से युक्त किस प्रकार हैं ? यह सुनकर मतिसागर मन्त्री कहते हैं- 'पुष्कलावती नाम का देशान्तर है। उसकी पुण्डरीकिणी नाम की नगरी में वज्रदन्त नाम का श्रेष्ठ चक्रवर्ती राजा है। उसकी पत्नी यशोधरा गर्भभार से आलस्यवती थी। अपने मन की क्रीड़ारति (दोहद रूप) चाहती हुई वह सीतानदी और समुद्र के संगम पर गयी। वहाँ पर उसने दुःखों से रहित जलक्रीड़ा की। अपनी सखियों के साथ वह घर वापस आ गयी। नौ माह के बाद उसके शरीर से देव द्वारा अवतारित चरमशरीरी सागरदत्त नाम का पुत्र हुआ। नवयौवन में उसने नाटक देखा। उसके अनुचर ने उसका मुख देखा और कहा-हे कुमार ! देखिए, यह मेघ मानो सुमेरु पर्वत है। उसने अपनी धवलिमा से चन्द्रमा को पराजित कर दिया है। यह सुनकर जैसे ही वह पुरुषसिंह अपना मुँह और गर्दन ऊँची करके देखता है, तब तक वह मेघ अचानक नष्ट हो जाता है। वह युवक सोचता है कि मोह के द्वारा प्रवंचित हूँ, इस मेघ के समान S.AP भनिए। 6. AP स्वविदि। 7. APP तहु। 9. A पहु। (10) I.AP डकिणि। 2. AP कीलावस ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433