Book Title: Mahapurana Part 5
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 355
________________ | 99.5.5 ] महाकइपुष्यंतविरय महापुराणु बहुबुद्धिवंतु महुं होउ चट्टु ता चवइ सेट्ठि तुहुं कुमइयंतु णंदणु ण समप्पमि तुज्झ तेण सीहउरि राउ हउं अज्जवम्मु णिसुणिवि जायउ मुणिदूसहाह सम्माइट्ठिउ मिच्छत्तहारि ता ताएं अप्पिउ तासु बालु उज्झाएं किउ तत्थेय कालु घत्ता - आरूढउ जीव्वणि पावेसइ एहु गरिदपट्टु । उ होसि बप्प " पणिवायहंतु । तं आयण्णिवि पड़िलविउं तेण । सिरिवोरणंदिपयमूर्ति धम्मु । उ सक्किउ घेरपरीसहाहं । ओहच्छमि तावसर्वसधारि । सिक्खिउ सत्यत्थई गुणगणालु | सुहजीएं छिंदिवि मोहजालु । पम्फुल्लियवणि सहइ वसंतु व सुंदरु । ता गयरब्धंतरि अक्खड़ घरि घरि पड़हु महुरमंथरसरु ॥4॥ (5) पाचहु केरउ परमकूड तें गोलु लाइव वेंकरंतु राहु जेज्जीय तं तेव कराउं जीवंधरेग आणिउ गोउलु जयकारएण X. P परमारुहंतु । 9 AP मरु पंधर सवराहिउ णामें कालकूडु । जो 'आणइ भडथडमहिमहंतु । सुरूवें बीसीय । संगरि हय भिल्ल धणुद्धरेण । लहुं ढोइय करूंगारएण | 1 353 10 (5) 1. AP आणइ भड भडथडमहंतु । 2. AP जयगारएण । 15 बुद्धिवान यह मेरा शिष्य हो जाए। यह राजपट्ट प्राप्त करेगा ।" तब सेठ कहता है कि "तुम खोटी बुद्धिवाले हो, हे सुभट ! तुम प्रणाम करने योग्य नहीं हो। इसलिए मैं अपना पुत्र तुम्हें नहीं सौंप सकता।" यह सुनकर उस साधु ने प्रत्युत्तर दिया- "मैं सिंहपुर का राजा अजयवर्मा हूँ। श्री वीरनन्दी के चरणमूल में धर्म सुनकर मैं मुनि हो गया, परन्तु मैं असह्य घोर परीषह सहन नहीं कर सका। इसलिए तापसवेश धारण करनेवाला मिथ्यात्व का हरण करनेवाला सम्यकदृष्टि हूँ।" तब पिता ने उसके लिए बालक सौंप दिया। शास्त्रार्थ से उसने गुणगणालय उसे सिखा दिया । उपाध्याय ने भी शुभ योग से मोहजाल को नष्ट कर वहीं पर अपना काल किया (निर्वाण किया) । 5 बत्ता - यौवन पर आरूढ़ कुमार खिले हुए वन में वसन्त के समान सुन्दर लगता था। इतने में नगर के भीतर घर-घर में मधुर मन्धर स्वरवाला नगाड़ा यह कहता है (5) कि कालकूट नाम का जो भील राजा है यह मानो पाप का ही परमकूट है। उसने चिंघाड़ते हुए गोकुल का अपहरण कर लिया है। सैनिकसमूह और धरती से महानू जो उसे ला देगा, उसे सुन्दर देहवाली गोविन्द की कन्या दी जाएगी, जो रूप में मानो दूसरी सीता है। कुमार जीवन्धर ने वैसा ही किया। उस धनुर्धारी युद्ध में भीलराज को मार दिया और गोकुल को लाकर दे दिया। जयकार करते हुए काष्ठांगार ने शीघ्र ने

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