Book Title: Mahapurana Part 5
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 362
________________ 3601 199.10.3 महाकइपृष्फयतविरयउ महापुराणु पुणु विजयविसइ भुयबलविसटु हेमाहउ पट्टणु बद्धपदु। विस्तार राइ लमित्तु णाम णलिणा मइएवि विइण्णकाम । हेमाह पुत्ति जणदिण्णमयणु इय बोल्लिउं जोइसिएहि वयणु। मुक्कउ धाणुक्कें चवलु बाणु जा पावइ झत्ति ण लस्खठाणु । ता पावइ गंपिणु जो तुरंतु सो एयहि कुमरिहि होई कंतु । ता लेल्थु मिलिय णर णरहं सामि बाणासणविज्जापारगामि। गउ जीवंधरु जा सरु ण जाइ ता लक्खु छिवेप्पिणु चलु विहाइ। पडियागउ णं णरवेसपवणु भूवइ भाणु व भाभारभवणु। दवमित्तें तहु दिण्णी कुमारि चउभायरकिंकरचित्तहारि। गंदड्डे पुच्छिय भाउजाय कहिं जासि णिच्चु तुहं लद्धछाय। ता विहसिवि अक्खइ चारुगत्त णियदेवरासु' गंधव्वदत्त । हउं जामि बप्प तुह भायपासु ता सो पभणइ पप्फुल्लियासु। मई णेहि माइ जहिं वसइ बंधु पेच्छमि परमेसरु सच्चसंधु। तं णिसुणिवि परणरदुल्लहाइ बोल्लिउ जीवंधरवल्लहाइ। पुज्जाविहि गुरुभत्तिइ करेवि णियभायरु णियहियइ धरेवि। 10 15 वापस चली गयी। अपने बल से शत्रुओं को जीतनेवाला वह धनुर्धारी अकेला ही वहाँ से निकल पड़ा। फिर, विजयदेश में हेमाम नाम का नगर है। उसमें बाहुबल से विशिष्ट और राजपट्ट बाँधे हुए दृढ़मित्र नाम का विख्यात राजा था। पूर्ण काम को वितीर्ण करनेवाली, उसकी नलिना नाम की महादेवी थी। उसकी हेमामा नाम की पुत्री थी। ज्योतिषियों ने उसके सम्बन्ध में लोगों में काम की उत्सुकता उत्पन्न करनेवाले ये शब्द कहे थे कि धनुष से छोड़ा गया बाण जब तक अपने लक्ष्यस्थान को शीघ्र नहीं पाता, तब तक जो तुरन्त जाकर उसको पा लेगा, वह इस कुमारी का पति होगा। तब धनुर्बाणविद्या के पारगामी विद्याधरों और मनुष्यों के स्वामी वहाँ आये। जब तक तीर नहीं पहुँचा, तब तक लक्ष्य छूने के लिए कुमार जीवन्धर चंचल दिखाई देता है मानो मनुष्य के रूप में पवन ही लौटकर आ गया हो। भूपति (जीवन्धर) भा (कान्ति) के भार का भवन भानु के समान था। राजा दृढ़रथ ने चारों भाइयों और अनुचरों में सुन्दर लगनेवाली कन्या उसे दे दी। नन्दाढ्य ने अपनी भ्रातृजाया (भौजाई गन्धर्वदत्ता) से पूछा-"छायारूप में तुम प्रतिदिन कहाँ जाती हो ?" तब सुन्दरदेहवाली वह अपने देवर से कहती है-“हे सुभट ! मैं तुम्हारे भाई के पास जाती हूँ।" खिले हुए मुखवाला वह कहता है- "हे आदरणीया ! मुझे भी वहाँ ले चलो जहाँ भाई रहता है। मैं सत्यसिन्धु परमेश्वर के दर्शन करूँगा।" यह सुनकर, दूसरे मनुष्यों के लिए दुर्लभ जीवन्धर की प्रियतमा ने कहा-"भारी भक्ति से पूजाविधि कर अपने भाई को अपने हृदय में धारण कर, रात्रि का समय आने पर जनसुन्दर तरंगिणी 4. AP जोइसिएण। 5. A होउ। 5. A णरयेतु पवणु। 7. Pणियदेवराट। 8. A adds ufter this line : छपाछुद्धहीरमंडल सुवत्त, सा अणुदिणु सेवइ विसय मृत्त। . P चेलिर।

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