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92.15.15] महाकइपुष्फयंतविरयउ पहापुराणु
[245 (15) देउ भडारउ हुयउ अणुतरि दुक्खविवज्जिइ सोक्खणिरंतरि । तं' तेहउं दुक्किउं अवलोइवि मइ अरहतधाम्म संजोइवि । वरुणारियहु पासि अमाया तिण्णि वि भायर मुणिवर जाया। गुणवइखंतिहि पयई णवेप्पिणु कामु कोहु मोहु वि मेल्लेप्पिणु। तरुणिहिं संजमगुणवित्थिण्णउं* मित्तणायसिरिहि' मि व चिण्णउं। सल्लेहणविहिलिहियई गत्तई अच्चुयकप्पि सुरत्तणु पत्तई। पंच वि ताई पहाइ महंतई थियई दिव्वसोक्खई भुंजतई। ताम जाम बावीससमुद्दई धम्म' कासु ण जायई भद्दई। रिसि मारिवि दुक्कियसंछण्णी पंचमियहि पुहइहि उप्पण्णी। पुणु वि 'सयपहदीवि दुदरिसणु फणि हूई दिट्ठीविसु भीसणु। पुणु वि "णरइ तसथावरजोणिहि हिंडिवि दुक्खसमुभवखाणिहि । पुणु मार्यगि जाय चंपापुरि गोउरतोरणमालाबंधुरि। साहु समाहिगुत्तु मण्णेप्पिणु" धम्मु जिणिदसिठ्ठ जाणेप्पिणु। पत्ता-तेत्थु जि पुरि पुणरवि सा मरिवि दुग्गंधेण विरूई। मायंगि "सुयंधहु वणिवरहु सुय धणएविहि" हूई ॥15॥
(15) (वह मरकर) दुःखों से रहित और सुखों से भरपूर अनुत्तर स्वर्ग में देव हुआ। उसके वैसे दुष्कृत्य को देखकर, अपनी बुद्धि अरहन्त धर्म में नियोजित कर निष्कपट भाव से आचार्य वरुण के पास आकर तीनों ही भाई मुनिवर हो गये। गुणवती आर्या के पैरों को प्रणाम कर, काम, क्रोध और मोह को छोड़कर, तरुणियों-- मित्रश्री और नागश्री ने भी संयमगुण से विस्तीर्ण व्रत ग्रहण कर लिया। उन्होंने सल्लेखना विधि से शरीर सुखा लिया और वे अच्युत स्वर्ग में देवत्व को प्राप्त हुई। प्रभा से महान्, वे पाँचों ही दिव्य सुखों का भोग करते हुए तब तक स्थित रहे, जब तक बाइंस सागरपर्यन्त समय नहीं बीत गया। धर्म से किसका कल्याण नहीं बता ? पाप से आच्छन्न धनश्री मुनिश्री का वध कर पाँचवें नरक में उत्पन्न हुई। फिर स्वयंप्रभा द्वीप में दुर्दशनीय भीषण दृष्टिविष साँप हुई। फिर दुःखों की उत्पत्ति की खान त्रस-स्थावर योनियों और नरक में घूमकर, फिर गोपुर एवं तोरणमाला से सुन्दर चम्पापुर में चाण्डाली हुई। वहाँ मुनि समाधिगुप्त को मानकर
और जिनेन्द्र द्वारा कथित धर्म को जानकर, ____घत्ता-उसी नगरी में फिर से मरकर वह चाण्डाली, सुबन्धु सेठ और धनदेवी दुर्गन्धा से अत्यन्त विरूप कन्या उत्पन्न हुई।
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(15) AS ते ते3 BF ते तहत। 2. PS वरुणारियहो। 3. गुणु । 4. Pायधसिरिहि । 5. SB | 6. A सोक्ख दिव्यई। 7.5omits this foot. HAPS पुटविहे। 9. PS सयंपहे दीवे। 10. णग्य। ।।. P"खोणिहे। 12. AP पाणप्पिणु । II. ABAIs. सुबंधुहे। 14. A अ वहे।