Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 10
________________ महापुराण बीतशोकनगरमें वैधयन्त नामका राजा था। उसको रानीका नाम सर्वश्री था। उसने दो पुत्रोंको जन्म दिया-संजयन्त और उपन्त । एक दिन जैन मुनिका प्रवचन सुनकर उन सबने संसारका परित्याग कर दिया । समयके दौरान वैजयन्तने निर्वाण प्राप्त किया। इस अवसरपर जो देव उनके प्रति अपनी प्रज्ञा प्रदर्शित करने आये, उनमें नागोंका देव भी था जो अत्यन्त सुन्दर था। जयन्नने यह निदान बांधा कि अगले अम्ममें उसका वैसा ही सुन्दर शरीर हो जैसा कि नागोके स्वामीका है। वह भागलो कमें नागोंका देवता हुआ। एक दिन जब संजयन्त प्रतिमाओंकी सायना कर रहा था, विद्यदष्ट विद्याथरने उसे देखा, उसे उठाया और च नदियोंके संगमक्षेत्र में फेंक दिया तथा लोगोस कह दिया कि पति शैतान है। इसपर टोगोंने मुनिको पीटा, परन्तु वह अविचलित रहे। वह यातनाओंको सडझे हुए रिणिको प्राप्त हुए। इस अवसरपर जयम्त सहित, जो नागोंका देवना या, पर न आये। अपने भाई की स्थिति देखकर नागने लोगोंपर हमला शुरू कर दिया । ये बोले कि हमने इसलिए साधुको विद्याधर विद्युदंष्टकी सूचनापर पीटा। तब नागदेवताने विद्याधर विद्युइंष्टको पकड़ा, और जब कि पहला दूगरेको समुद्रम फेंकनेवाला था, आदित्यप्रभ देखने बीच-बचाव किया और उसने उन सबके पूर्वभवोंका वर्णन किया। सिंहपरमें वहां सिहसेन मामका राणा था। रामदत्ता उसको गनी थी ! श्रीभूति और सत्यघोष उसके मन्त्री थे। नगरमें भद्रमित्र नामक व्यापारी था, जो पद्मख पडपुरवे सुरत्त और सुमिपाका पुत्र था । यात्रा करते हुए भदमित्रको कीमती मणि मिले जिन्हें उसने अश्योगके पास परोह के अपमें रख दिया। ( बाद में रावघोष और श्रीभुति में भ्रम है) कुछ समय बाद भद्रमित्रने अश्वघोषसे रल लौटाने को कहा, परन्तु उसने रत्नों की जानकारी के बारे में साफ मना कर दिया, यहां तक राजाके पूछने पर गो। भद्रमित पागल हो गया और गजमहलके पड़ोस में एक पेड़ार बहकर चिल्लाकर मन्त्रीकी इज्जत घरने लगा। रानी रामदत्ता मन्त्रीसे चिढ़ गयी और उसने उसके साथ एक चाल पली । उसने सत्यगोपी मास जएका खेल खेला जिसमें वह पहचानवाली अँगूठी और पवित्र जनेऊ रातीसे हार गया। उसने अपनी दासीके माध्यमसे मन्त्रीके खजांचीके पास अंगूठी भेटी और उससे रन प्राप्त कर लिये। इस बातकी परीक्षाके लिए कि भद्राभित्रने जो कुछ कहा है, वह सत्ये है, राजाने उन रनोंमें मिला दिये जो मिटके थे। वे रत्न मद्रमित्रको दिखाये गये। उसने केवल अपने रल उठाये यह कहते हुए कि वे उसके नहीं है। तब राजा उसपर प्रसन्न हो गया। राजाने मन्त्रोको सजा दी और वही बर्ताव किया जो गक घोरपे साथ किया जाता है। मन्त्रोने इसके लिए राजाके प्रति अपने मनमें गांठ बांध ली। अगले जन्म में बढ़ अगम्यन नाग बना और राजाके सजानेमें खड़े होकर राजाको काट सामा। अगले जम्मा भद्रमित्र रामबत्ताके पुत्र के रूप में जन्मा उसका नाम सिंहवन्द्र रखा गया । उसका छोटा भाई पूर्णवन्न पा। और यह इस विस्तारमें है कि तीनों व्यक्तियों को पूर्वमव की जोधनियाँ इस सम्धिके प्रारम्भमें गणित की गयी है। LVIIP-समान्तकी जीवनीके लिए (१४ तीर्थकर ) तालिका देखिए । उनके तीर्थकाल में बलदेव, वासुदेष और प्रतिषासुदेवका चौपा समूह उत्पन्न हुआ। नन्दएरमें राजा महाबल था । वह 'मुनि हो गये और मरकर सहस्रार स्वर्गमें सत्पन्न हए। उस समय पोदनपुरमें राजा वसुसेन राज्य करता था। उसकी रानी नया बहुत सुन्दर थी। उसका मित्र चन्द्रशासन उसके पास रहने आया। उसने नन्दाको देखा, वह उसके प्रेममें पड़ गया और यमुसेनसे कहा कि वह उसे दे दे। उसने ऐसा करने से मना कर दिया। परन्तु चन्द्रशासन उसे जबरदस्ती ले गया। इसके बाद वसुसेन मुनि बन गया और मृत्यु के बाद उसो स्वर्गमें सत्पन्न हुआ, जिसमें महाबल उत्पन्न हुआ था। पन्द्रशासन अगले जन्ममें वाराणसोके राजा विकास और रानी गुणवतीका पुत्र हुआ। महाबल और वसुसेन, राजा सोमप्रभकी रानियों (जयावती और सीक्षा) से क्रमशः तत्पन्न हुए और क्रमशः उनके नाम सुप्रभ और पुरुषोत्तम रखे गये । मधुसूदनने उनसे उपहारकी मांग की, और चूंकि उन्होंने ऐसा करनेसे मना कर दिया, इसलिए मधुसूदन और पुरुषोत्तममें संघर्ष हुमा जिसमें मधुसुदन मारा गया। पुरुषोत्तम अर्घचक्रवर्ती बन गया।

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