Book Title: Mahamantra ki Anupreksha Author(s): Bhadrankarvijay Publisher: Mangal Prakashan Mandir View full book textPage 3
________________ भूमिका परमेष्ठि नमस्कार विश्वप्रेम का प्रतीक है । परमेष्ठि भगवान् सकल विश्व पर निष्काम प्रेम एवं निष्काम करुरणा भाव रखते हैं । ग्रत. उनके प्रति किया गया नमस्कार विश्वप्रेम का ही प्रतीक है | नमस्कार द्वारा परमेष्ठि भगवान के प्रति दर्शित विनय समग्र विश्व के जन्तुओ के प्रति प्रेम का प्रतीक है । विश्वप्रेमियो के प्रति अविनय वैर एवं द्वेषभाव का चिह्न है । विश्वप्रेम अमृत है । श्रत. नमस्कार द्व ेषभावरूपी विष का प्रतिकार है, अशुभ राग ज्वर का विनाशक है । विश्वप्रेम एवं विश्वप्र मी दोनो के प्रति प्रेम बताने वाले, प्र ेम जगाने वाले तथा शुभ राग-द्वेष का विशोधन करने वाले परमेष्ठि नमस्कार को शास्त्रकारो ने जगत की माता अथवा पुण्य के जनक की उपमा प्रदान की है । परमेष्ठि नमस्कार के प्रति आदर भाव सुख का उत्पादक है एवं सर्व जगत के प्राणियों का रक्षक है । अनादरभाव अपने ही सुख का भक्षक है | सकल जगत के सुख के लिए ही नही किन्तु - अपने स्वयं के सुख के लिए श्री परमेष्ठि नमस्कार सेवनीय है । सभी इसके सेवन से सुख, सौभाग्य एवं सद्गति पर्यन्त मुक्ति - रमणी के परमसुख प्राप्त करें, यही एक शुभाभिलाषी ! - भद्रङ्कर विजय अनन्तचतुर्दशी संवत् २०२८ $Page Navigation
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