Book Title: Mahaguha ki Chetna
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 60
________________ T इसलिए कहा, 'मन की दुविधा गर मिटे, मिटे जगत जंजाल' । कभी यह कभी वह, कभी यहाँ कभी वहाँ । मनुष्य के मन की यही तो दुविधा है। पेण्डुलम की तरह अस्थिर है उसका चित्त । डाँवाडोल है उसका अन्तर्मन । मिट जाएँ अगर मन की दुविधाएँ तो साधना की आधी समस्याएँ तो स्वतः समाप्त हो जाएंगी। 'महागुफा की चेतना काटे मायाजाल' मन की दुविधाओं से मुक्त होकर अगर हम अमन दशा को उपलब्ध कर लें तो महागुफा में प्रविष्ट चेतना क्षण भर में मायाजाल को नष्ट कर सकती है। यही साधना की पूर्णता है और चरम उपलब्धि है। प्रभु करे, आपके जीवन में ऐसा कुछ सौभाग्य का सूर्योदय हो, मन का कायाकल्प हो जाए, भक्ति और ध्यान उसका शृंगार हो जाए, रोमरोम से रस झर पड़े, मिट जाएं दुविधाएँ मन की और खुल जाए द्वार मुक्ति का, यही अभिलाषा है आप सबके लिए । प्रभु करे ऐसा ही हो । आज इतना ही । Jain Educationa International काया मुरली बाँस की For Personal and Private Use Only :: 51 www.jainelibrary.org

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